Book Title: Yatindrasuri Abhinandan Granth
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh

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Page 496
________________ विषय खंड • पुरवणी को जब कोई देखता था तो लगभग १॥-२ घंटे उसी को देखने में उसे लग जाते थे। क्योंकि जीवन की प्रमुख घटनाओं का वर्णन उन चित्रों में तादृश्य बताया गया था। दूसरी भगवान महावीर के जीवन की मुख्य घटनाओं का और चित्र था। राजा मेघरथ की दान शीलता दिखाई गई थी। जांघ से माँस काटता हुआ मेघरथ व तराजू पर उछलता हुआ कबूतर विद्युत गति से सचलित थे इस कारण से यह दृश्य बहुत ही प्रशंसनीय रहे । प्रतिदिन हजारों की तादाद में उस आध्यात्मिक प्रदीर्शनी के दर्शन हेतु जन-समाज उमड़ पड़ता था और कुछ न कुछ जीवन में प्रेरणा-युक्त संदेश लेकर जाता था। मंडप के बीच चाँदी से मंडित उस छोटेसे मंदिर में जिन-प्रतिमा बिराजमान थी । जहाँ पर पूजा पाठ व धार्मिक अनुष्ठान होते थे। -- कार्य-क्रम -- प्रातः स्मरणीय भगवान् महावीर स्वामीजी का जन्म-कल्याणक महोत्सव चैत्र सु. १३ के दिन था और उसी दिन से हीरक जयंति के कार्यक्रम प्रारम्भ हुए । महावीर-जन्म-कल्याणक महोत्सव के उपलक्ष में दिन में एक विशाल चळ-समारोह निकला जिसमें हजारों स्त्रि-पुरुष, साधु एवं साध्वी याँथीं । नगर के प्रमुख बाजारों में वह विशाल चल समारोह जब बैंड की मधुर आवाज के साथ चलना प्रारम्भ हुआ उस समय वहाँ का समस्त जन-समुदाय उस महापुरुष की जय-जयकार मना रहा था। रात्रि को पं. श्री जुहारमलजी की अक्षध्यता में विद्वद् सम्मेलन का आयोजन किया गया जिस में पं. रमाकान्तजी शास्त्री, पंः राजमलजी लोढा शास्त्री, पं. मदनलालजी जोशी शास्त्री, पं. करमलकरजी शास्त्री, श्री दौलतसिंहजी लोढा बी. ए. मुनि समुदाय में से मुनिश्री विद्याविजयजी, मुनिश्री कल्याण विजयजी, मुनि जयन्तीजयजी आदि के सारगर्भित सामाजिक, सौधान्तिक एवं सांस्कृतिक ोजस्वी भाषण हुए। जिस को श्रवण करने के लिये हंजारों की संख्या में जनता उमड़ पड़ी थी। कवि-सम्मेलन चैत्र शुक्ल चर्तुदशी के दिन रात्रि को कवि सम्मेलन हुआ उसमें कई स्थानों के कवियों की उपस्थिति थी। जोड़-तोड़ की कविताएं हुई । राजस्थानी और मालवी कवियों की कविता सम्बन्धी होड़ भी हुई । उसदिन की रात्रि को लगभग ४ बजे तक सारा जन समुदाय स्तब्ध बैठा रहा। कवियों ने अपनी-अपनी कला का विशेष रूप में प्रदर्शन किया और जनता का स्वस्थ मनोरंजन हुआ। पौर्णिमा को चतुर्विध संघ सहित चल समारोह निकला। हाथी पर भगवान की प्रतिमा बिराजमान थी और हजारों स्त्री-पुरुष अपने प्रभु का गुणगान करते हुए नगर के प्रमुख बाजारो में धूम थे। उस दिन का दृश्य भी देखने लायक था। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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