Book Title: Yatindrasuri Abhinandan Granth
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh

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Page 494
________________ - हीरक जयंति : प्रत्येक देशमें वहाँ के महा पुरुषों के आदर्श जीवन एवं उनकी अमूल्य सेवाओं के फल स्वरुप वहाँ का जनमानस उन महापुरुषों के सन्मान् हेतु; उनके जन्मदिन, निर्वाणदिन, तथा जीवन के क्षेत्र में कोई महत्वपूर्ण घटना हुई हो वहदिन; उस महापुरुष का अनुयायी सारा समाज एकत्रित होकर उनके महत्व पूर्ण जीवन का जन-समाज के सन्मुख विशेष रूप से उत्सव आदि करके मनाते हैं। हमारे भारतदेश में तो यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। भारतवर्ष का समाज अपने उन महापुरुषों का सन्मान् जिन्होंने कि जन-कल्याण के हेतु अपना जीवन लगा दिया है । लाखों वर्षों से करता आया है और करता रहेगा। - आज का पश्चिमी जगत भी इस रुप को लिये हुए है। वहाँ पर भी उनदेशों के महापुरुष की; डायमंड जुबिली, गोल्डन जुबिली, सिलव्हर जुबिली आदि मनाई जाती है । यह सारे कार्यक्रम उनकी स्मृति बनी रहे इसलिये है। भारत क जैन समाज भी अपने धार्मिक महापुरुषों का जिन्होंने कि जैन-धर्म, संस्कृति और समाज कल्याण का कार्य किया है उनका सन्मान् विशेष रुप से करता है। जिन-धर्म में त्याग को विशेष महत्व दिया गया है। जैना-चार्य आज के जगत को केवलियों की वाणी सुनाते हैं; आदर्श त्याग-मय जीवन बिताते हैं. पण्डित है; तथा धर्म का सच्चे रुप में प्ररुपण करते हैं । इसी कारण आज का जैन-जगत इन धार्मिकसभ्राटों का विशेप रुप से सन्मान करता है । पूज्यवर ! यतीन्द्र सूरिश्वरजी महाराज भी आज के जैनाचार्यों में विशेष स्थान रखते हैं । आपका उज्जवल जीवन समाज में दीपक के समान हैं और आपके गुरुवर पू. पाद् राजेन्द्र सूरिश्वरजी महाराज जगत्-प्रसिद्ध व्यक्ति थे । त्रिस्तुतिक समाज आज पूज्यवर! राजेन्द्र सूरिश्वरजी महाराज की पाट-परपरा का अनुयायी है और वर्तमानार्य जो इस समय हैं वे आपही की पाट-गादी पर बिराजित हैं । अतएव समाज ने अपने गुरुदेव श्री के पाट पर बिराजित पूज्यवर! यतीन्द्र सूरिश्वरजी महाराज का हरिक-जयंति महोत्सव मनाया और आपके सन्मान् हेतु एक अभिनंदन-ग्रंथ भेट किया है जिसमें आपके शुद्धतर जीवन व कार्यों का वर्णन है। हरिक-जयंति का उद्भव मालवा-संघ के आग्रह से पूज्य गुरुदेव श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरिश्वरजी महाराज साः की निश्रा में एक “अखिलभारतीय-त्रिस्तुतिक-समाज" का प्रतिनिधि सम्मेलन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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