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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
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हरिक-जयंति तथा अभिनंदन ग्रन्थ भेंट समारोह आज वैसाख वदि १ का दिन था । प्रातःकाल से ही सभी लोग अपने पूज्य गुरुदेव श्री का सन्मान करने के हेतु तयारी कर रहे थे; प्रातःकाल ही श्री मोतीलालजी बनवट १३०१) रुपये की बोली बोळकर हाथी पर ग्रन्थ लेकर बिराजमान हुए और शहर में वरघोड़ा (चलसमारोह) निकला । सभी बाजारों में जैन-जनता हजारों की संख्या में उपस्थित थी और इस दृश्य को देखकर आनंद का अनुभव करती थी।
६० वर्ष पूर्व भी इसी नगरी में पूज्य गुलदेव श्री का दीक्षा महोत्सव हुआ था और उसी स्थान पर हरिक जयंति भी मनाई जा रही है। खाचरोद संघ धर्म कार्य में विशेष रुप से अग्रणी रहा हुआ है।
जब समारोह नगर में धूमकर धर्मशाळा पर आया तो वहीं सभा में परिवर्तित हो गया। सारा पेंडाल स्त्री-पुरुषों से खचाखच भर गया था। कहीं भी खाली जगह नहीं दिखाई देती थी कितने ही लोग जगह के अभाव में पेंडाळ के बाहर बैठे हुए थे।
सभी लोग इस समय पूज्य “गुरुदेव श्री के आगमन की बाट जो रहे थे। थोड़ी ही देरी के उपरांत पूज्य गुरुदेव श्री पधारे और जनता ने जय-जयकार के नारों से सभा मंडप को गुंजा दिया।
मंगल-गीत जसे ही पूज्य गुरुदेव श्री उपस्थित जन समुदाय के सन्मुख बिराजमान हुए तब का वह दृश्य अत्यन्तही सुखप्रद था। पश्चात् डॉ. प्रेमसिंहजी की अध्यक्षता में समारोह की शुरुआत हुई सर्व प्रथम इस समय जीवन-भर निःस्वार्थ भावसे जिन-शासन की सेवा करने वाले उन महान विभूति का "स्वागत-गीत" मालकोंश राग में वाद्य यन्त्रों सहित जब श्री सेठ धर्मचंदजी नागदा निवासी खाचरोदने गाया, जनता मंत्र मुग्ध सी बैठी रही वह भावणेपू वंदना चिरस्मरणीय रहेगी।
पूज्य गुरुदेव श्री का यह “हीरक जयंति" महोत्सव था, इस कारण सभी भक्तजन अपनी-अपनी भावना से गुरुदेवश्री की अर्चना, वंदना कर रहे थे। पंडित-जुहारमलजी निवासी इंदौर ने जब अपना वक्तव्य प्रारम्भ किया तो आपने उस सभा को तीर्थंकरों की सभा से उपमा दी और बतलाया कि यह सभा केवल नर-नारियों के लिये ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी भी इस सभा में आये हैं और अपनी-अपनी भाषा में जिनेश्वर वाणी समझ रहे हैं । कारण यह था कि जब मालकोस राग में वंदना गीत हुआ, तो यह राग जब तीर्थंकरों की सभा भरती है तब देवता लोक उनकी वंदना में गाया करते हैं। इसी कारण उस ओपमा के लायक वह सभा थी । यद्यपि तीर्थकरों के अतिशय व उनकी वाणी तो सात नारकी के जीवों को भी संतोष अनुभव कराती है, और उन्हीं तीर्थंकरों की वाणी का
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