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विषय खंड
मेघ विजय जी एवं देवानन्द महाकाव्य
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ने स्वयं बुलाया था। दरबार के अतिरिक्त अनेक राज्यों में भ्रमण किया और राजाओं को धर्मोपदेश देकर हिंसा को रुकवाया। इस काव्य में चरित-काव्य की अपेक्षा यात्रा का वर्णन अधिक है। इतना सब कुछ होते हुये भी यह एक ऐतिहासिक कृति है और ऐतिहासिकता को कवि ने पद्य रूप में बहुत ही सुन्दर तरह से व्यक्त किया है।
अन्त में आदरणीय पं. बेचारदास जीवराज दोशी एवं श्री अगरचन्दजी नाहटा के प्रति अभार प्रकट करता हूँ। इनकी सामग्री का यथास्थान उपयोग किया है।
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