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जैन श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश
लेखक -अगरचंद नाहटा
गच्छ शब्द का प्राचीन प्राकृत रूप 'गण' है । श्वे० जैनागमों के अनुसार भ० ऋषभदेव से लेकर भ० महावीर तक प्रत्येक तीर्थंकरों का विशाल श्रमण संघ शिष्योंकी पढाई, व्यवस्था आदि की सुविधा के लिये कई समुदायों में विभक्त रहता था और प्रत्येक समुदाय का नेता एकेक ग गधर होता था, अतः जितने 'गण' होते थे उतने ही गणधर भी होते थे। जैसे भ० ऋषभदेव के भमणों के ८४ समुदायों में विभक्त होने पर उनके ८४ गण प्रसिद्ध हुएँ। प्रत्येक समुदाय का एक नेता होने से उनके गणधरों की संख्या भी ८४ थी। भ० पार्श्वनाथ तक तो यही क्रम चलता रहा । कल्पसूत्र की स्थिविरावली के अनुसार उनके ८ गण और ८ ही गणधर थे। पर भ० महावीर के गण एवं गणधरों की संख्या में अन्तर पाया जाता है, उनके गणधर ११ थे पर गण ९ ही बतलाये गये है । इसका कारण २-२ गणधरों की वाचना एक होना बतलाया है।
स्थिविरावली में यह भी बतलाया गया है कि ९ गणधर तो भ० महावीर की विद्यमानता में ही मोक्ष पधार गये; केवल गौतमस्वामी व सुधर्मास्वामी दो ही विद्यमान रहे । उनमें भी गौतम स्वामी को वीर निर्वाण की रात्रि को केवलज्ञान होगया, अतः उनका गण सुधर्मास्वामी के सुपर्द होजाने से आज जो भी श्रमण समुदाय है वह श्री सुधर्मा स्वामी के ही परम्परा का है। उपकेश गच्छ को छोडकर श्वे० सभी गच्छों की पट्टावलियों में की परम्परा सुधर्मा स्वामी से सम्बंधित पाई जाती है। उपकेश (ओसवाल-पीछे से केवल संज्ञा प्राप्त ) गच्छवालों ने अपनी परम्परा भ० पार्श्वनाथ से मिलाई है, पर वास्तव में देखा जाय तो भ० महावीर के समकालीन पार्श्वपरम्परानुयायी श्रमणों के प्रधान आचार्य केशी (उत्तराध्ययन सूत्र के २३ वे अध्ययन के अनुसार) गौतम गणधर से भ. पार्श्वनाथ एवं भ० महावीर की शासन भिन्नता के कारणों सम्बन्धी प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर पाकर उसके शासन में सम्मिलित हो गये थे। उस आगम सूत्र में ही है "पंच घम्ममहव्वय पडिवज्जइ भावओ" अर्थात् भ० महावीर के प्ररूपित ५ महाव्रतों का स्वीकार कर उनके संघ में सम्मिलित होगये थे । अतः उनकी परम्परा स्वतंत्र नहीं रह जाती ।
- जिस प्रकार जैन गृहस्थों की जातियां प्रधान तया स्थान, व्यक्ति व कार्यों के नामें से बढती ही चली गई एवं मध्यकात्र में जैन जैनेतर जातियों की संख्या ८४ बतलाई जाती है। उसी प्रकार उन्हीं कारणों को लेकर श्वे० जैन श्रमणों के गच्छों की संख्या ८३ लिखी मिलती है। वास्तव में संख्या वा यह अंक ८४ अंक के महत्त्व का ही परि
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