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श्री यतींद्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
सूरि से यह शाखा भेद हुआ । इसके सम्बन्ध में हमारा सूरि' निबंध देखना चाहिये ।
४ ) बेगड – सं. १४२२ में जिनेश्वरसूरि से यह भेद हुआ ।
विविध
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'शासन प्रभावक जिनप्रभ
५) पिप्पलक - सं. १४७४ से जिनवर्द्धनसूरि से यह शाखा अलग हुई । पिप्पलक स्थान से संबंधित होने से पिप्पलक कहलाया ।
६ ) आद्यपक्षीय सं. १५६४ जिनदेवसूरि से यह शाखा अलग हुई । इसकी पाली में गड़ी थी जिसके श्रीपूज्य ५-७ वर्ष हुए कालधर्म को प्राप्त हुए हैं I
७) भावहर्षीया - सं. १६२९ में भावहर्षसूरि से यह शाखा अलग हुई। इसकी गद्दी बालोतरा में है । अभी श्रीपूज्य नहीं हैं ।
८) लघुआचार्य शाखा - सं. १६८६ में जिनसागरसूरि से यह शाखा अलग हुई । उनकी गद्दी बीकानेर में है व श्रीपूज्य जिनचन्द्रसूरिजी के पट्टधर सोमप्रभसूरि विद्यमान हैं । ९) जिनरंगसूरि शाखा - सं १७०० में जिनरंगसूरिजी से यह शाखा चली । इनकी गद्दी लखनऊ में है व श्रीपूज्य विजयसूरि हैं ।
१०) श्रीसारीय - - सं. १७०० के लगभग श्रीसार उपाध्याय से यह भेद पड़ा, पर इसकी परम्परा चली प्रतीत नहीं होती ।
११) मंडोवरा - सं. १८९२ में जिनमहेन्द्रसूरि से यह शाखा मंडोवर स्थान के नाम से मंडोवरा कहलाई । इसकी गद्दी जयपुर में है व श्रीपूज्यजी धरणेन्द्रसूरिजी हैं । इनमें से लघु आचार्य शाखा की पट्टावली मुनि जिनविजयजीसंपादित ' खरतरगच्छ पट्टावली संग्रह' में प्रकाशित हो चुकी है। बेगड, पिप्पलक, जिनरंगसूरि शाखा आदि के सम्बन्ध में संक्षिप्त विवरण हमारे ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित हैं । मूल जिनभद्रसूरि शाखा की भी अवान्तर शाखायें कई हुई जिनमें १ क्षेमघाड़ी (क्षेमकीत्तिजी से ) २. कीर्त्तिरत्नसूरि ३. सागरचंद्रसूरि विशेष प्रसिद्ध हैं ।
खरतर गच्छ के इतिहास के सम्बन्ध में हमने विशेष अन्वषेण किया है । समस्त खरतरगच्छीय साहित्य व प्रतिमा - लेखों की सूची व शाखाओं का इतिवृत्त तैयार किया गया है ।
rice निभद्रसूरि शाखा की मूल गद्दी बीकानेर में है जिसके श्रीपूज्य विजयेंद्र - सूरि विद्यमान हैं ।
विशेष जानने के लिए 'खरतर गच्छ इतिहास ' ग्रन्थ प्राप्त है ।
खरातपा - यह उपकेशगच्छ की शाखा होने से उस गच्छ का परिचय देते हुए प्रकाश डाला जा चुका है । २-४ प्रतिमा - लेखों के अतिरिक्त इसका उल्लेखनीय कोई भी वृत्तान्त ज्ञात नहीं है ।
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