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विषय खंड
संस्कृत में जैनों का काव्यसाहित्य
आते हैं । प्रथम श्रेणी के उदाहरण स्वरूप जयनन्दि का 'वरांगचरित', सिद्धर्ष की "उपमितिभवप्रपञ्चा कथा' तथा धनपाल की 'तिलकमंजरी' आदि कथाग्रन्थ प्रस्तुत किये जा सकते हैं। विरांगचरित' की रचना आ० जयसिंहनन्दि ने (ई. ७ वीं शताब्दी) काव्यात्मक शैली में ३१ सर्गों में की है। वराङ्ग एक पौराणिक व्यक्ति है
और वह धर्म, अर्थ, काम पुरुषार्थों का विधिवत् पालन कर अन्त में मोक्ष जाता है। सिद्वर्ष की उपमितिभव प्रपञ्चाकथा' (सन् ९०६ ई०) आठ प्रस्तावों में विभक्त एक साङ्गरूपक कथा है जो कि भारतीय साहित्य में अपने ढंगका निराला है। इसमें संसारी जीव अनेक योनियों में भ्रमण करते हुए निकृष्ट अवस्था से उठकर क्रमशः क्रोध, मान, माया आदि पर विजय प्राप्तकर मोक्ष जाता है । कथा में मानसिक विकारों को रूपक देने के कारण इसमें तत्कालीन युग की अनेक मान्यताये और विविध सामाजिक चित्रण मिलते है । 'तिलकमंजरी का हमने गद्यकाव्यों में वर्णन किया है। अन्य कथानकों में 'उत्तम चरित कथामक' 'चम्पक श्रेष्ठि कथानक' ( १५ वीं श०), 'मृगावती चरित' आदि आते हैं। इनमें कुछ कथानकों की संस्कृत देशीभाषाओं से प्रभावित है। . दूसरी श्रेणी के कथासाहित्य में कुछ ऐसे संग्रह मिले हैं जिनमें एक बड़ी कथा के अवान्तर अनेक छोटी कहानियां प्रसंगानुसार दी गई हैं । इस तरह के ग्रन्थों में नागदेव (इ. १४ वीं) के दो ग्रन्थ 'सम्यक्त्व कौमुदी और मदनपराजय' तथा शानसूरि की 'रत्नचूडाकथा' (१५ वीं श०) मुख्य हैं। इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी ग्रन्थ मिले हैं जिनमें स्वतन्त्र रूप से कथाओं का संकलन किया गया है जैसे हरिषेण का 'कथाकोष' (वि. सं. ९८९) प्रभाचन्द्र का 'कथाकोष' (११ वीं श०) देवप्रभसूरि का 'कथारत्नकोष' (वि. सं. ११५८) तथा अन्य ग्रन्थ पुण्याश्रव कथाकोष आदि
कथासाहित्य में उपहासात्मक कहानियां तो जैन विद्वानों की अपनी देन हैं। प्राकृत में हरिभद्र का 'धूर्ताख्यान' इस दिशा में पहला प्रयत्न है। संस्कृत में संघतिलक का 'धूर्ताख्यान' हरिषेण की धर्मपरीक्षा (सं. १०४४) तथा अमितगति की 'धर्मपरीक्षा (सं. १०७९) उल्लेखनीय ग्रन्थ हैं।
इसके अतिरिक्त जैन विद्वानों ने भारतीय कथासाहित्य की रक्षा में भी पर्याप्त परिश्रम किया है । संस्कृत साहित्य के अद्वितीय कथाग्रन्थ 'पञ्चतन्त्र' का एक पाठान्तर जैनाचार्य पूर्णभद्रकृत 'पञ्चाख्यायिका' (सन् १९९९) नाम से तथा दूसरा ग्रन्थ ‘पञ्चाख्यानोद्धार' (सन् १६६०) मिला है। इसी तरह 'सिंहासन द्वात्रिंशिका' की एक
१ माणिकचन्द्र दिग. जैन ग्रन्थमाला, बम्बई से प्रकाशित २. बंगाल एशियाटिक सोसा. लंकसा से प्रकाशित 3 निर्णय सागर प्रेस, बम्बई से प्रकाशित ४ डा. आ. ने. उपाध्ये द्वारा लिखित, वृहत्कथाकोश की ५ सिन्धी जैन मन्थमाला से प्रकाशित ।
मूमिका देखें।
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