Book Title: Yatindrasuri Abhinandan Granth
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
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शकटाल के सम्बन्ध में अनेकों महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्य ज्ञात होते हैं ।।
इसी तरह यदि अन्य पुराणों के अध्ययन प्रस्तुत किये जाय तो वे बड़े रुचिकर सिद्ध होंगे।
कथासाहित्य:
पुराणों और चरितों के समान ही जैनों का कथासाहित्य अतिसमृद्ध है । जैन सन्त अच्छे कथाकार थे और उनका इन कहानियों से क्या अभिप्राय था इसके सम्बन्ध में कहा जा चुका है । विशेष बात यह है कि अन्य साहित्यिक अंगों की अपेक्षा इस साहित्य से हमें सामान्य जनजीवन की एक अच्छी झांकी मिलती है।
जैनाचार्यों ने कथाओं के सामान्यतः चार मौलिक विभाग किये हैं:-अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा और संकीर्णकथा । इनमें धर्मकथा को उनने सर्वश्रेष्ठ और शेष को निकृष्ट माना है। धर्मकथा से उनका आशय उस कथा से है जिसमें क्षमा, मार्दव आदि १० आत्मधर्मों की साधना, अणुव्रत आदि १२ व्रतों का पालन तथा क्षुधा, तृषादि २२ परीषहों पर विजय आदि का वर्णन प्रधान हो। काव्यशास्त्र-विशारदों ने काव्यशास्त्र के नियमों के पालन पर तथा अर्थगांभीर्य एवं लौकिक सम्मत प्रसिद्धियों पर जोर देकर जिस कथानक रचना का विधान किया है उसे जैनाचार्यों ने संकीर्ण कथा कहा है तथा अभीष्ट नहीं माना।
__ धर्मकथा के अन्तर्गत हमें अनेक प्रकार की कहानियां, आख्यान और चरित्र मिलते हैं जिनमें जीवन्धर, यशोधर, श्रीपाल आदि धर्मवीरों की, व्रत-नियमों के पालन में अपने समस्त जीवन को लगा देने वाले स्त्री-पुरुष पात्रों की, पुराणों में वर्णित तपासूर संतों की तथा भव-भवांतरों में पुण्य - पाप कर्मों को अर्जित कर उनका फल भोगने वाले व्यक्तियों की कथायें पाते हैं। इन कथाओं का उद्देश्य जैन मान्यताओं का दृष्टांत के साथ प्रचार करना है तथा पाठकों एवं श्रोताओं के मन पर उक्त धर्म की विशालता और शक्ति का प्रभाव बैठा देना है। इस तरह जैन धर्मसम्मत धार्मिक एवं नैतिक आदशों की समाज के बीच स्थापना करना इन कथाओं का उद्देश्य है । ये कहानियां शुष्क सिद्धान्तों और आचार-नियमों की चर्चावस्तु मात्र ही नहीं है। प्रत्युत अनेक शिक्षाप्रद उपदेशों के समय वे यथार्थ में जनमनोरंजन के लिए भी बनायी
जैन पुराणों और चरितों में उनके अंगभूत यद्यपि अनेक कथायें मिलती हैं। फिर भी पीछे कुछ का विकास कर उन पर स्वतंत्र ग्रन्थ लिखे गये हैं। सुविधा की दृष्टिसे इन ग्रन्थों को दो श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं। प्रथम श्रेणी में आख्यायिकायें और काव्यात्मक ढंग से लिखे गये कथानक तथा दूसरी श्रेणी में कथाओंके संग्रहरूपमें रचे गये कथाकोष
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