Book Title: Yatindrasuri Abhinandan Granth
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
View full book text
________________
विषय खंड
।
संस्कृत में जैनों का काव्यसाहित्य
२२७
%3
संस्कृत का दूतकाव्य प्रायः शृंगाररस पूर्ण है; पर इस काव्य को शान्तरसप्रधान बनाने में जैनों का प्रयत्न अद्भुत है । इस प्रकार से कितने ही कवियों ने धार्मिक नियमों और तात्त्विक सिद्धान्तों का उपदेश भी दिया है। ये काव्यसाहित्य का आनन्द देने के सिवाय भारतवर्ष की तत्कालीन भौगोलिक स्थिति, नगर, ग्राम आदि का परिचय भी देते हैं । ___दूतकाव्यों के ढंग पर जैनाचार्यों ने एक और महत्वपूर्ण साहित्य निर्माण किया जिसे हम 'विज्ञप्तिपत्र'' कहते हैं । ये विज्ञप्तिपत्र पयूषण पर्व के समय जैन साधुओं द्वारा उनके आचार्यों को लिखी गई चिट्ठियां हैं जो प्रायः दूतकाव्यों के ढंग पर रची गई हैं । इनमें कुछ तो काव्यों की आलंकारिक संस्कृत में और कुछ प्राकृत एवं अपभ्रंशमिश्रित संस्कृत में मिलते हैं । पच्छिमी भारत के जैन ग्रन्थ भण्डारों में इस प्रकार के अनेकों विज्ञप्तिपत्र मिलते हैं । ___ ऐतिहासिक महत्व के काव्य :-इस प्रकार के महत्वपूर्ण साहित्य की रचना में भी जैन विद्वानों ने अपनी निपुणता दिखलाई है । ये ग्रन्थ बाणभट्ट के हर्षचरित एवं बिल्हण के विक्रमांकदेवचरित के समान ही बड़े उपयोगी है। इन ग्रन्थों में आ० हेमचन्द्र का 'द्वयाश्रय काव्य' (१२ वीं शता०) सबसे महत्वपूर्ण है । यह २८ सर्गों का एक बड़ा काव्य है जिसमें अलहिण पाटन के चौलुक्य राजाओं का आदि से कुमारपाल तक पूरा विवरण दिया गया है । इसके प्रारंभिक २० सर्ग संस्कृत में और ८ सर्ग प्राकृत में लिखे गये हैं । ग्रन्थकार ने इस ग्रन्थ को दो उद्देश्यों से बनाया था - एक तो चौलुक्यों का इतिहास लिखने के लिए और दूसरा अपने 'शब्दानुशासन' व्याकरण ग्रन्थ के प्रयोगों को उदाहृत करने के लिए । यह ग्रन्थ दो भाषाओं में निर्मित होने से तथा दो उद्देश्यों की सिद्धि के लिए बना होने से द्वयाश्रय काव्य कहलाता है। दूसरे ऐतिहासिक ग्रन्थ हैं - अरसिंहका (१३ वीं शता.) 'सुकृतसंकीर्तन', उदयप्रभ की 'सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी' और 'धर्माम्युदय काव्य" ( १३ वीं शता० ) तथा बालचन्द्र सूरि का 'वसंतविलास महाकाव्य' (से. १२९७) ये बघेलानृप वीरधवल और उनके महामात्य वस्तुपाल तेजपाल के शासनकाल पर विशेष प्रकाश डालते हैं। इसी तरह नयचन्द्र सूरि (१४ वी श० ) का 'हम्मीर महाकाव्यx' शाकम्भरी के तथा रणथम्भौर के चौहानों पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालता है। यह राजा हम्मीर के नाम पर लिखा गया है। इस कोटी के अन्य ग्रन्थों में कुमारपालचरित नाम के अनेक ग्रन्थ जैनाचार्यों ने बनाये हैं उनमें जयसिंह सूरि का कुमारपाल चरित+ प्रामाणिक है।
१. ऐसेन्ट विज्ञप्तिपत्राज ( हीरानन्दशास्त्री), बड़ौडा । २. बम्बई संस्कृत सिरीज, १९१५. 3. जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर । ४. गायकवाड ओरि. सिरीज, बडौदा । ५. सिन्धी जैन ग्रन्थमाला ।
*. गायकवाड ओरि. सिरीज, बडौदा । x. नीलकण्ठ ज. किर्तने, बम्बई ।
+. निर्णय सागर रेस, बम्बई ।
Jain Educationa international
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org