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विषयखंड
भगवान महावीर
वर्धमान महावीर
महावीर जैसे सुपुत्र के गर्भ में आने से ही पिता ज्ञातक्षत्रिय महाराजा सिद्धार्थं का कुल, कुटुंब, राज्य सब प्रकार से उदयमान हुआ था । धन-धान्य से, ऋद्धि-समृध्दि से, जय-विजय से, मान-सन्मान आदि से वृध्दि पाया था । इस हेतु से बालक के जन्म होने के बाद माता-पिता ने दश दिन तक विशिष्ट उत्सव मना कर बारहवें दिन शातिजनादि को भोजनादि सन्मान - सत्कार कर सर्वजनसमक्ष इस बालक का गुण-निष्पन्न 'वर्धमान' नाम प्रकट किया था । लेकिन उनके असाधारण वीरत्व- पराक्रम, गुण सौच-समझ कर लोकों ने पीछे से उनको 'भगवान् महावीर' नाम से उद्घोषित किया था ।
धीर-वीरता
बाल्यar में भी वर्धमान कुमार ने निर्भयता का एवं धीर वीरता का केवल परिचय ही नहीं, समान - वयस्कों को जीवन- प्रगति का अमूल्य मंत्र सीखाया था । स्वयं विशिष्ट ज्ञानी होने पर भी असाधारण गंभीरता का अनुभव कराया था ।
विवाह
युवावस्था में भी उचित शिष्ट आचरण भाचरने में वे कभी चूके न थे । मातापिताके वचन को मान दे कर उन्हों ने यशोदा नामक राजकुमारी का पाणिग्रहण किया था । २८ वर्ष की वय होने तक महावीर ने आदर्श गृहस्थाश्रम को विभूषित किया था । प्रियदर्शना पुत्री की प्राप्ति भी हुई थी ।
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भावसाधु
माता-पिता के स्वर्गवास होने पर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण होने से अनासक्त वैराग्यचासित महावीर ने प्रव्रज्या (दीक्षा) स्वीकारने की अपनी इच्छा ज्येष्ठ बन्धु नन्दीवर्धन आदि के समक्ष प्रकट कर उनकी अनुमति चाही थी, बन्धुजनों ने विज्ञप्ति की कि - 'माता-पिता के तात्कालिक विरह- दुःख से दुःखी हम लोगों को आपके वियोग से और अधिक दुःखी न बनावें, दो वर्ष हमारे सान्निध्य में रह कर शांति दो' भगवान् महावीर बन्धुजनों के वचन को मान दे कर दो वर्ष और संसार में वसे, लेकिन शील - संपन्न (ब्रह्मचारी) भावसाधु बन कर रहे थे ।
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सांवत्सरिक - दान
महावीर ने तीसवें वर्ष में निज धन-संपत्ति का सदुपयोग, सद्व्यय, विनियोग किया था । प्रकट उद्घोषणा - पूर्वक प्रति प्रभात सांवत्सरिक ( वर्षतक ) दान दिया था । करोड़ों सोनैये के अनर्गल दान से दीन, दुःखी, दरिद्र याचकों को संतुष्ट कर जगत् के दारिद्रय को दूर किया था । दान-धर्म का स्वयं आचरण करके विश्व को दान-धर्म कर्तव्य रूप से सीखाया था । इस तरह राज्य-वैभव, ऋद्धि-समृद्धि और कौटुम्बिक मोह का परित्याग किया था ।
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