Book Title: Yatindrasuri Abhinandan Granth
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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विश्व-मैत्री और विश्व-शान्तिके सच्चे विधायक विश्व-वत्सल
भगवान महावीर ले. - पं. लालचन्द्र भगवान, बड़ौदा.
चैत्रशुक्ला प्रयोदशीका पवित्र दिन भगवान महावीर के जन्म-कल्याणकसे पावन होकर चिरस्मरणीय हुआ है। आजसे २५५५ वर्ष पहिले इस धन्य मंगल दिन इस महापुरुषने पूर्वदेशके क्षत्रियकुण्ड में जन्म लेकर अपने जन्म से भारतदेशको गौरवशाली
या था- अपूर्व जन्म-महोत्सव मनाया गया था । सूर्य जैसे महावीरका उदय हुआ था। सच्ची अहिंसा, प्राणि-मात्रको अभयदान, विश्व-मैत्री और विश्व-शांति के अमूल्य बोध-पाठ सीखानेवाले विश्व-बन्धु प्रभु महावीर के जन्म से सर्वत्र अपूर्व उद्योत-प्रकाश चमका था । जगत् में सुख-शांतिका वातावरण फैल गया था । प्राणिमात्र में सुख, शांति, भानंद का संचार हुआ था।
भगवान् महावीर के पवित्र जीवन-चरित्र कई प्राचीन विद्वानोंने, कवियोंने, पूर्वाचार्यों ने प्राकृत और संस्कृत भाषामें हजारों गाथाओं और श्लोकों में विस्तार से
हैं, कई प्रकाशित हुए हैं। तथा भगवान महावीर का तत्त्वज्ञान मय सर्व जीवहितकर सदुपदेश भी कई ग्रन्थों में दर्शाया है। कल्याण चाहनेवाला कोई भी सजन उनके जीवन से और सदुपदेशों से बोध-पाठ सीख कर स्व-पर-कल्याण सिद्ध कर सकता है। यहाँ स्पष्ट संस्मरणरूप संक्षेप में सूचित किया जाता है।
मातृ-भक्ति
क्षत्रियाणी माता त्रिशलादेवी को आए हुए १४ महास्वप्नों से भगवान महावीर का जन्म सूचित हुआ था। माताकी कुक्षिमें रहते हुए भी भगवान ने मातृ-भक्ति दर्शाई थी। अपनी हलन-चलन से माताको कष्ट न हो, इस आशय से वे स्थिर-निश्चल बन गये थे। उधर माताको अमंगल शंका से उद्वेग-खिन्नता हुई थी। इसको लक्ष्य में लेकर महावीरने गर्भावस्था में सातवे महिने में ही ऐसा अभिग्रह ग्रहण किया था कि 'माता-पिताकी विद्यमानता में मैं प्रवज्या नहीं स्वीकारूंगा और उनकी जीवन्त अवस्था में मैं श्रमण नहीं होऊंगा।' माता-पिताको अपने विरहसे भविष्य में कोई अनिष्ट आपत्ति न हो- इस हेतु से मति, श्रुत, अवधिशान नामक तीन शान धारण करनेवाले महावीर ने वैसी अभिग्रह-प्रतिज्ञा स्वीकारी थी। इस प्रसंग से मातृ-पितृ-भक्तिका अमूल्य बौधं-पाठ निज जीवन के प्रारम्भ में ही महावीरने जगत् को सीखाया था । भगवान महावीर की जन्म-महिमा दिक्कुमारिकाओं ने तथा देवेन्द्रोंने सहपरिवार
डंबरसे अलौकिक स्वरुप में की थी।
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