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विषय खंड
वसंतगढ की प्राचीन धातु प्रतिमायें
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स्पष्ट रूप से बने हुए ये दोनों शिल्प पश्चिम भारतीय कला के इतिहास के महत्व के सीमाचिह्न बन गये हैं । यह कला विशेषतः राजस्थान और गुजरात - सौराष्ट्र में फैली है। उसकी उत्पत्ति भी पश्चिमी भारत में इसी प्रदेश में हुई । मरुदेश के शृङ्गधर (शारंगधर होना चाहिये) नामक कलाकार ने इस शैली का सर्जन किया । शील नामक राजा के दरबार में आश्रय पा कर इस कलाकार ने देवदेवियों के रूपों का निर्माण किया और चिरंजीवी चित्रकारी भी की। मतलब की उसने भित्तिचित्रों ( Frescoes and Murals) और धातु या पाषाण के शिल्प बनाये। यह उल्लेख बौद्ध लामा तारानाथ के बयान से हमें मिलता है।
आज तक इस प्राचीन पश्चिमी भारतीय कलाशैली ( School & Ancient West ) का अस्तित्व स्वीकृत नहीं हुआ था। क्योंकि इस शैली की कलाकृतियाँ पहिचानी नहीं गई थीं। गुप्तकला और गुप्तोत्तर कालीन पाल-शैली से हमारे कलामर्मज्ञ सुपरिचित थे। किन्तु स्पष्ट समय देते हुए लेखयुक्त पश्चिमी भारत के शिल्पों से अशात थे ।
हम देख सकते हैं कि ये दोनों तीर्थंकर की प्रतिमायें न तो गुप्तशली की या गुप्तकालीन हैं और न वे गुप्तोत्तर - कालीन सारनाथ की या नालन्दा, कुर्किहार आदि स्थानोंकी पाल -शैली की हैं। यह स्पष्ट है कि दोनों शिल्प उस विशिष्ट शैली के हैं जिससे मिलते-जुलते इनसे पहिले या पीछे बने हुए कई शिल्प सारे राजस्थान, गुजरात और मध्यभारत के पश्चिमी हिस्सों में आज भी उपलब्ध हैं।
पाल शैली का जन्म ईसा की आठवीं सदी के अन्तभाग में हुआ । ये दोनों शिल्प सातवीं सदी के अन्तभाग के हैं। मगर ये दोनों शिल्प पश्चिमी भारतीय कला के उद्धव के समय के नहीं हैं। किन्तु इनका समय निश्चित होने से हम कह सकते हैं कि इस कला का उद्गम ई. स. ६८७ से पूर्व किसी समय में हुआ।
वह समय कौन सा था? मरुदेश के इस कलाकार शारंगधर ने जिस के दरबार में आश्रय पाया वह शील राजा कौन था ?
वह शिलादित्य हर्षवर्धन नहीं हो सकता । हर्षवर्द्धन की राजधानी थी कन्नौज । और वहाँ हर्ष के बाद हर्ष के साम्राज्य का अन्त हुआ। कनौज से जो कुछ इस शैली के शिल्प मिले हैं उनसे ज्यादा राजस्थान और गुजरात में मिले हैं। फिर हर्ष का समय ईसा की सातवीं सदी का पूर्वार्ध है । इस समय के पूर्व के और इसी के समकालीन ईसी कला के उत्कृष्ट नमूने गुजरात में बड़ोदा के पास अकोटा से मिले हैं । अतः हर्ष के पूर्व के किसी शील संज्ञक राजाने शारंगधर को आश्रय दिया वह राजा हो सकता है वलभी का शिलादित्य प्रथम अपर नाम धर्मादित्य, जिसका समय है ई. स. की छठी सदी का अन्त भाग । हमारे विचार से इस समय में पश्चिम भारतीय प्राचीन कला का जन्म हुआ । इस अनुमान को कई और कई और कारण से एक पुष्टि मिलती है।
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