________________
१३८
श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
(८) आर्य सुहस्ति के शिष्य सुस्थित सुप्रतिबुद्ध से “कोडिय गण" निकला, जो कोटिक गण आज भी प्रसिद्ध है । इसकी ४ शाखायें व ४ कुल हुए ।
शाखा-१. उच्चानागरी २. विजाहरी ३. वहरी ४. मज्झिमिल्ला
कुल -१. बंभलिज' २. वत्थलिज ३. वाणिज ४. मण्हवाहणय (९) उपर्युक्त कोटिक गण के सुस्थित सुप्रतिबुद्ध के शिष्य प्रियग्रन्थ एवं विद्याधर गोपाल से क्रमशः मज्झिमा (मध्यम) एवं विजाहारी (विद्याधरी) शाखा निकली ।
(१०) आर्य दिन के शिष्य आर्य शांति श्रेणिक (सेन ) से “ उच्चानागरी" शाखा निकली।
(११) आर्य शांति श्रेणिक के निम्नोक्त ४ शिष्यों से ४ शाखायें निकलीं । १. अजसेणिय से अजसेणिया
२. अजतावस से अजतावसी । ३. अन्जकुबेर से अजकुबेरी
४. अज्जइसिपालिय से अज्जइसिपालिया
[२] आर्य सिंहगिरी के शिष्य आर्य वज्र एवं आर्यसमित से क्रमशः वंभदीविया व अजवइरी शाखा निकली। [१३] आर्य वज्र के शिष्यों से निम्नोक्त ३ शाखायें निकली
१. आर्य वज्रसेन से अजनाइली २. आर्य पद्म से अजपउमा
३. आर्य रथ' से अजजयंती [स्थविरावली के प्रारंभ में आर्य वज्रसेन के ४ शिष्यों में से १ आर्यनाईल से अज्जनाइला २ आर्यपोमिल से अज्जपोमिला ३ आर्यजयन्त से अज्जजयन्ती एवं ४ आर्यतापस से अज्जतापसी]
[१४] नंदि स्थिरावली के अनुसार आर्य नागहस्ति से 'वाचक वंश' प्रसिद्ध हुआ, जिसमें रेवती नक्षत्र, बह्मद्वीपकेशि. स्कंदिलाचार्य आदि आचार्य हुए । तत्वार्थ
१ कसविज्ज. २ गुस्तमिजिआ. 3 सोवीरी. ४ सिरिगुत्तिय. ५ बंभणिज्ज
+ स्थिरावली के प्रारंभ में वत्र के बनसेन के शिष्य आर्यनाईल ब आर्य मयन्त से जयंती शाखा निकलने का उल्लेख है और अंत में वज्रसेन व रथ से इन नामोंवाली शाखा निकलना लिया है । शाखा के नाम के अनुसार प्रारंभ का कथन ठीक लगता है ।
१ भरहिज्ज
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org