Book Title: Yatindrasuri Abhinandan Granth
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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लेखक
वीतराग सर्वज्ञ श्रीतीर्थंकर प्रभु ने अपने अंतिम पुरुषार्थ यानी संपूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये जो मार्ग बतलाया है उसे हमें जानना हैं, मानना है और आचरण में लाना है ।
मोक्ष पथ
सूरजचंद सत्यप्रेमी ( डॉगीजी )
मोक्ष पथ का ज्ञान करके उसे मान्य करना और उसी का ध्यान करना सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक् चारित्र्य कहलाता है । सत्ज्ञान, सत्भान और सत्कार ही मोक्ष का पथ है । महान आचार्य देव श्री उमास्वामी के मोक्ष शास्त्र का यही मंगल सुत्र है ।
" सम्यग्दर्शन, ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग : "
अब हमें यह विचार करना है कि, क्या जानें ? क्या मानें ? और क्या आचरण करें ? जिससे हमारा साध्य सिद्ध हो सके ।
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निर्ग्रन्थ के प्रवचन ही आदरणीय है, निर्ग्रन्थ के प्रवचन ही ज्ञेय हैं, और निग्रन्थ के प्रवचन ही ध्येय हैं। उन्हीं को जानें, माने और अमल में लावें । वचन तो हम सभी बोलतें है परन्तु प्रवचन उन्हें ही कहना चाहिये जो प्रकृष्ट वचन हों । मोक्ष मार्ग में उत्कृष्ट बोलों का ही उपयोग है और ऐसे बोल निर्ग्रन्थ के ही हो सकते हैं । जिनके हृदय में राग द्वेष की ग्रन्थि है उनके वचनों का मोक्ष पथ में कोई मोल नहीं । जिसमें राग हो वह दोष नहीं देख सकता, और जिसमें द्वेष हो वह गुण नहीं देख सकता । गुण दोषों का ठीक ठीक ज्ञान करने के लिये वीतराग का हृदय चाहिये निर्ग्रन्थ के प्रवचन चाहिये और निष्पक्ष पुरुषोत्तम की आत्मा में से ही सत्य ज्ञान का प्रकाश आ सकता है ।
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" जैनं जयति शासनम् ” जिनेश्वर भगवान के शासन की जय हो - विजय हो । जिसने अपने इन्द्रियों और मन के विकारों पर विजय प्राप्त नहीं की, जिसने बुद्धि में से अस्थिरता और विषयों का ममत्व निर्मूल नहीं किया वह स्वयम् ही बद्ध है तो औरों को मुक्त कैसे कर सकता है ? खुला हुआ व्यक्ति ही बँधे हुए को खोल सकता है ।
'मुत्ताणं मो अगाणं '
देवेन्द्र का यही कहना है कि प्रभु मुक्त हैं और मोचक हैं- छूटे हैं इसलिये छुड़ा सकते हैं। आझाद व्यक्ति ही शासन कर सकता है । जो वासनाओं के बंधन में बंधा है उसके शासन की विजय कैसे हो सकती है ?
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