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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
कुमार राजसिंह और मन्त्री पुत्र यह बात सुनकर अपने को नवकार मंत्र के प्रति अत्यन्त श्रद्धान्वित करते हुये विस्मय पूर्वक आगे बढे और अविछिन्न प्र करते हुए क्रमशः मन्दिरपुर पहुंचे। वहां भी घर घर में उत्सव मनाया जाता देख कर एक आदमी को बुला कर कुमार ने उस उत्सव का कारण पूछा तो उसने कहा
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जिनदास श्रावक कथा.
इस मन्दिरपुर नगर में बलि नामक राजा राज्य करता है। एक वार वर्षा ऋतु में नदी के प्रवाह में प्रवाहित होता हुआ एक बिजौरा आया । एक व्यक्ति ने उसे लेकर राजा को भेट किया। राजाने उस स्वादिष्ट फल को खा कर पूछा कि यह किस की वाडी का है ? उस व्यक्ति ने कहा राजन् ! यह नदी में प्रवाहित होकर आया है । राजाने इसका उत्पत्ति स्थान शोध करने की आज्ञा दी । राजपुरुष नदी के किनारे किनारे उस वाटिका की शोध में निकल पड़े । आगे जाने पर एक वाड़ी मिली। जिसमें उन्होनें प्रवेश किया तो आस पास के लोगोंने कहा - इस वाटिका का जो फल फूल ग्रहण करेगा, उसकी अवश्य मृत्यु होगी ! राजपुरुषों ने राजा से यह बात निवेदित की। राजा तो रस लोतुप था, उसने तलारक्षक को आज्ञा दी कि वह प्रतिदिन बिजोरा फल मंगाने की व्यवस्था करे । उस ने समस्त नागरिकों को एकत्र कर उनके नाम चिठी पर लिख कर एकत्र रख दिये। अब प्रतिदिन कुंवारी कन्या के हाथ से चिठ्ठी निकाली जाती, जिसका नाम निकलता वही व्यक्ति उस वाटिका में फल लेने के लिए जाता । वह फल तोड़कर नदी में फेंक देता जिसे राजपुरुष ले आते । उस फल लाने जाने वाले व्यक्ति का वाडी में ही संहार हो जाता इस प्रकार प्रतिदिन एक पुरुष की हत्या से नगर में हा हा कार मच गया ।
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एक दिन जिनदास श्रावक के नाम की चिठी निकली। जिनदास श्रावक निर्मय होकर जीव राशि क्षामणा पूर्वक सागारी अनशन लेकर नवकार मन्त्र का जाप करते हुए वाटिका की ओर बढा । उसने वाटिका के द्वार पर जा कर उच्च स्वर से नवकार मन्त्र का उच्चारण किया। जब वन यक्ष ने सुना तो वह स्तब्ध हो कर कुछ सोचने लगा । फिर उसने उपयोग देकर देखा कि मैंने पूर्व भव में सांसारिक भोगों को त्याग कर संयम धर्म स्वीकार किया था । पर शुद्ध चारित्र न पालन कर बहुत से दोष लगाए जिससे मर कर व्यंत्तर योनि में उत्पन्न हुआ हूं । धिक्कार है मुझे, मैने कौडी के मोल चिन्तामणि रत्न को गँवाया। अब यह जिनदास श्रावक मेरा गुरु है, इस की सेवा करनी चाहिए । यह सोचकर वह प्रत्यक्ष होकर जिनदास के चरणों मे गिरकर कृतज्ञता ज्ञापन करता हुआ, वर मांगने के लिए कहने लगा। सेठ ने कहा - एक तो जीव हिंसा न करने का नियम लो, और दूसरा मुझे प्रतिदिन घर बैठे एक बिजोरा पहुंचा दिया करो । यक्ष ने जिलास का वचन स्वीकार किया। जिन स श्रावक बिजौरा लेकर राजा के पास पहुचा और
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