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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
तुम इस साधक को छोड दो ! उसने सत्वर अपने शरीर पर खङ्ग का वार किया । राक्षस ने प्रसन्न हो कर कहा - बस कुमार मैं संतुष्ठ हूं, मनोवांछित मांगो ! कुमार ने कहा- राक्षसराज ! साधक को सिद्धि दो ! राक्षस ने कमार का वचन मान्य किया और साधक का मनोरथ पूर्ण हुआ । राक्षस ने कुमार को चिन्तामणी रत्न दिया । कुमार मित्र के समीप पहुंचा। कुमार और मंत्रीपुत्र प्रातःकाल वहां से दोनों चले वे क्रमशः कंचनपुर पहुंचे और वहां कनकमय जिन प्रासाद देखकर लोगों से पूछने लगे कि यह किसने निर्माण करवाया है ? लोगों ने कहा -
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शिवकुमार कथा
इसी कंचनपूर में सुभद्र सेठ रहता था । जिसको सुमंगला नामक भार्या थी । उनका पुत्र शिवकुमार सातो व्यसनों में आसक्त था । माता की हितशिक्षा को न मान कर वह दिनरात दुर्व्यसनों में निमग्न रहा करता था। अंत समय में पिता ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से पुत्र को बुलाकर नवकार मंत्र लिखाया और कहा कि आपत्ति के समय इस चतुर्दशपूर्व के सारभूत महामंत्र का स्मरण अवश्य करना । पिता की मृत्यु के उपरान्त शिवकुमार और भी अधिक निरंकुश होकर दुर्व्यसनों का सेवन करने लगा । फलस्वरूप निर्धन हो कर दुखी हो गया । एक योगी का आश्रय प्राप्त कर उसकी सेवा करने लगा उससे द्रव्य याचना करने पर योगी ने कहा - काली चतुर्दशी के दिन मेरे साथ स्मशान में चलना, तुम्हें खूब धन दूंगा । निर्दिष्ट समय पर दोनो स्मशान में गए । योगी ने मंडल की रचना कर गूगल का धूप किया, बाकुला, लापसी तैयार कर तिलों का होम किया । एक मुडदे के हाथ में खङ्ग देकर सुलादिया और शिवकुमार को उसके पांवों में तेल मालिश करते की आज्ञा दी । योगी मंत्र जाप करने बैठा, शिवकुमार मुडदे के पांच मसला हुआ भयभीत होकर सोचने लगा, आज मरणान्त आपदा आई, किस प्रकार इसके चंगुल से निकलूंगा ? तभी उसे पिताके वचन स्मरण हुए और मन ही मन एकचित्तसे नवकार मंत्र का जाप करना प्रारंभ कर दिया। योगी के मंत्र प्रभाव से मुडदा उठा, पर वापस भूमिसात् हो गया । योगी ने फिर से जाप किया पर फिर वोही बात हुई। योगी ने अपनी विद्या सिद्ध न होते देख कर सआश्चर्य शिवकुमार से पूछा- तुम भी कोई मंत्र जाप करते हो क्या ? शिवकुमार ने कहा यदि मैं मंत्र जानता तो आप के पीछे क्यों भटकता। योगी ने तृतीय वार जाप प्रारंभ किया, शिवकुमार विशेष एकाग्रतापूर्वक नवपद का ध्यान करने लगा । इस मंत्र के प्रभाव से वेताल विकराल हो कर उठा और योगी की चूंटी पकड कर उसे, अग्नि में झोंक दिया। इससे यह स्वर्ण पुरुष सिद्ध हुआ। शिवकुमार ने नवकार मन्त्र का प्रत्यक्ष चमत्कार देखा | स्वर्ण पुरुष को भूगर्भ में छिपा कर वह नगर में आया और राजा से मिल कर रातकी सारी बात निवेदित की। राजा ने स्वर्ण पुरुष शिवकुमार को प्रदान किया । इस स्वर्ण पुरुष की यह महिमा थी कि मस्तक और हृदय के अतिरिक्त जितना भी सोना काट कर लिया जाय दूसरे दिन परिपूर्ण हो जाता। इस प्रकार अनर्गल संपत्ति
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