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विषय खंड
श्री नमस्कार मंत्र महात्म्य की कथाएँ होकर राज प्रासाद में आते हैं। नगर के प्रमुख लोग उन का प्रतिनिधित्व कर रहे थे जिन के नाम इस प्रकार हैं
आल्हण, आंबड, अचलसी, आमड, आसड, अमरसी, आपू, अक्कड, अरजनसीह आपमल्ल, अमृतसींह, ऊदड, ऊहड, ऊघड, आसधीर, आसू, अज्जड, अमरड, ईसर, अमीपाल, अक्खड, काजड, करमण, कुमरसी, करणड, केसव, करमसी, कान्हड, केल्हण, काजलिसाह, कृष्णड, कोङउ, कूमड, कूपउ, कम्मउ, कुसलउ, कालउ, कमलउ, कउंरड, केलड, कपूरचन्द, कल्लू, खरहथ, खेतड, खीमसी, खीरदेव, खिंडपति, खेतसी, खीदड, खोखर, खिवराज, खीढड, खेमड, क्षेमराज, गेहउ, गांगड, गुणराज, गोपड, गोदड, गिरराज, गोईद, गुणू, गोपाल, गोढू, गोरड, गुणपाल, गढमल, गूजर, गुणदत्त, गज्जू, गोपीदास, गोवल, गौडीदास, आदि
इन महाजन लोगों ने राजा से निवेदन किया कि आपका पुत्र राजसिंह अत्यन्त रूपवान है जो प्रतिदिन नगरी में घूमता है। कुमार का नाम सुनते ही रूप मुग्ध स्त्रियां घर के काम काज और बच्चों को रोते छोडकर उसकी रूप सुधा को लोचनो द्वारा पान करने के लिए उद्यत रहती हैं। कोई, भोजन करती हुई, कोई पानी छानती हुई कोई मोतियों के हार पिरोती हुई सारे काम छिटका कर कुमार को देखने दौडती है। जिससे हम लोगों की बड़ी हानि होती है, एक दिन का तो काम नहीं, सदा का प्रश्न है! आप मालिक है, विचार करें। राजा ने कहा-ठीक है. हम कुमार को शिक्षा देंगे आप लोग निश्चित होकर सुख समाधि पूर्वक रहिए !
अब राजा ने कुमार को बुलाकर कहा - पुत्र ! घूमना फिरना अच्छा नहीं, तुम घर बेठे ही आराम से रहो ! पिता की यह शिक्षा कुमार को अरुचिकर लगी। उसने मित्र से कहा - मुझे पिता ने घर में रहने का आदेश दिया है, जो मुझे सर्वथा नही सुहाता । मुझे तो रत्नावती चाहिए, मैं विदेश जाऊंगा और अपने भाग्य की परीक्षा कर देखूगा । तुम यहां सुखपूर्वक रहो ! मित्र ने कहा - "मैं तुम्हारे बिना यहां नहीं रह सकता, जो तुम्हारी गति वही मेरी गति" इस प्रकार दोनों ने विचार करके मध्य रात्रि में प्रयाण कर दिया ।
ये दोनों मित्र क्रमशः वन-मार्ग का उल्लंघन करते हुए एक दिन रात्री के समय किसी सूने मन्दिर में ठहरे । मध्यरात्रि के समय मानव रूदन के स्वर सुनकर कुमार ने सोचा इन निर्जन वन में कौन दुखी मानव चिल्ला रहा है ? वह तुरत खङ्ग लेकर शब्द की अनुसार दूर निकल गया। आगे जा कर उसने देखा - एक राक्षस ने एक पुरुष को पकड़ रखा है । कुमारने कहा- अहो राक्षस ! इसने क्या बिगाड़ा है ? उसने कहा - इसने बहुत सी विद्याएं सीखी हैं, इसने मुझे आकर्षित किया, मैने इससे बलि रूप में अपना मांस देने को कहा । इसके अस्वीकार करने पर मै इस साधक को ही भक्षण करने को उद्यत हुआ हूं । कुमार ने कहा- मैं अपना मांस देने को प्रस्तृत हूं।
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