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विषय खंड
आदिकाल का हिन्दी जैन साहित्य और उसकी विशेषताएँ
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स्वतंत्र भाषा के रूप में अस्तित्व १६ वीं शताब्दी से ही स्वीकार किया है। इसके अतिरिक्त उपलब्ध रचनाओं के पाठ को देखने से भी इस तथ्य का पूर्ण स्पष्टीकरण हो जाता है । अतः यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि १५ वीं शताब्दी के पूर्व की जूनी गुजराती कही जानेवाली लगभग लमस्त रचनाएं आदिकालीन हिन्दी साहित्य की ही सम्पत्ति है । यो राजस्थानी को तो हिन्दीसाहित्य के विद्वानों ने हिन्दी मान ही लिया है । मीरा के भजन, पृथ्वीराज रासो, कबीर के भजन, ढोला मारू का दूहा, वीसलदेवरास आदि अनेक प्रसिद्ध कृतियां आज हिन्दी की सम्पत्ति कही जाती हैं । यह तथ्य सर्वमान्य है। अतः इस आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य को सुरक्षित रखने का श्रेय पुरानी राजस्थानी या जूनी गुजराती को ही दिया जायगा । यह पूर्णतया स्पष्ट है । इस विशाल साहित्य की भूलप्रवृत्तियां और अनेक विशेषताओं का विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता हैं :१. साहित्यिक और लोकभाषामूलक :___आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य साहित्यिक और लोक भाषा - दोनों में लिया गया है। जैनी साधुओं और कवियों में कई तो स्वान्तः सुखाय लिखनेवाले थे, तथा कई ग्राम-ग्राम नगर-नगर घूम-घूम कर लोकोपकारक उपदेशप्रधान तथा आध्यात्मिकता से पूर्ण साहित्य लोकभाषा में निर्मित करते थे। अतः एक तरफ इसमें चोटी की साहित्यिक विधाओं और तत्वों का समावेश है, तो दूसरी ओर इसमें जनभाषा और बोलियों का स्वभाविक प्रवाह । अतः यह साहित्य श्रेष्ठ साहित्यिक रचनाओं के साथ बोलचाल की रचनाओं का भी श्रेष्ठ कोष है।
२. प्रत्येक शताब्दी के प्रत्येक चरण का प्रतिनिधि :
इस उपलब्ध साहित्य की दूसरी प्रमुख विशेषता यह है कि इस में बड़ी-बड़ी से लेकर छोटी-छोटी अनेक रचनाएं उपलब्ध होती हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहां प्रत्येक शताब्दी के प्रत्येक चरण की रचनाएं काफी अच्छी संख्या में मिलती हैं। तथा उस समय की हस्तलिखित प्रतियां भी पूर्ण सुरक्षित हैं। कल प्रतियां तो मूल लेखकों की भी कही जा सकती है। हरेक शताब्दी की अनेक रचनाएं एक ही साथ उपलब्ध होने से इनकी प्रामाणिकता में भी कोई संदेह नहीं रह जाता । अतः हिन्दी भाषा और साहित्य के क्रमिक विकास में योग देने के लिए ११ वीं से १५ वीं शताब्दी के हर चरण का ये रचनाएं प्रतिनिधित्व करती हैं ।
३. विविध विषयक :
इस विशाल साहित्य में सामाजिक, धार्मिक, साहित्यिक, ऐतिहासिक काव्यों के साथ-साथ लोक-आख्यानक काव्य भी मिलते हैं। रामायण, महाभारत सम्बन्धी
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