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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
२०. गद्य की प्राचीनतम रचनाओं का साहित्य :
अनेक पद्य रचनाओं के साथ-साथ इन कृतियों में गद्यरचनाएँ भी सुरक्षित हैं। ये रचनाएं हिन्दी की प्राचीनतम रचनाएं कही जा सकती हैं । १४ वीं शताब्दी से ही गद्य की प्रामाणिक प्रतियां मिलती हैं। आराधना, अतिचार, बालशिक्षा, षडावश्यक, वालावबोध, कल्याण मंदिर बाला०, भक्तामर स्तोत्र बाला०, श्रावक बृहदतिचार आदि अनेक रचनाएं १४ वीं व १५ वीं शताब्दी की ज्ञात-अज्ञात जैन लेखकों की उपलब्ध हैं। इस सम्बन्ध में कई गद्य की कृतियां को प्रकाशित भी की जा चुकी हैं। इसके साथ हिन्दी साहित्य में गद्य के साथ-साथ 'गद्यकाव्य' की परम्परा को जन्म देने का श्रेय भी आदिकाल के हिन्दी जैन साहित्य को ही है। १५ वीं शताब्दी की श्री माणिक्यसुंदरसूरि लिखित 'पृथ्वीचंद वाग्विलास २ अब उपलब्ध गद्यकृतियों में गद्यकाव्य की परंपरा का उन्मेश करनेवाली प्राचीनतम एवं शीर्ष की कृति है। ऐसी अनूठी कृति निस्संदेह उल्लेखनीय है। अतः हिन्दी साहित्य की प्रामाणिक प्राचीनतम गद्यरचनाओं के साथसाथ गद्यकाव्य का उद्भव भी इसी साहित्य से हुआ है। ११. संख्यामें सर्वाधिक रचनाएं :
इस साहित्य की रचनाओं की संख्या अद्यावधि प्राप्त आदिकालीन जैनेतर साहित्य से अधिक है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने वीरगाथाकाल नामकरण का आधार एक ही प्रवृत्ति की प्राप्त होनेवाली रचनाओं की संख्या को ही दिया है। और उन्हें जो कुछ रचनाएँ वीरगाथाकालीन प्रवृत्ति की प्राप्त हुई वे सब अप्रामाणिक सिद्ध हुई हैं । अतः इस दृष्टि से यदि देखा जाय तो एक ही जैन धारा की प्रवृत्ति का उचित विश्लेषण व प्रतिनिधित्व करनेवाली हिन्दी जैन रचनाओं की संख्या लगभग ५०० है । संभवतः अन्य अनेक राजस्थानी, देहली, मेरठ, सहारनपुर, जयपुर, अजमेर, नागौर आदि भन्डारों की शोध होनेपर यह संख्या और अधिक बढ़ जाय । अतः रचनाओं की संख्या को ही नामकरण का आधार बनाया जाय तब तो आदिकाल को " हिन्दी जैनकाल या आदि हिन्दी जैन यग" या " अपभ्रंश युग" भी कहा जा सकता है। पर क्योंकि नामकरण के लोभ से हम जैनेतर कृतियों का महत्त्व भी कम नहीं करना चाहते । हमारा मन्तव्य तो यहां सिर्फ यही है कि यह साहित्य आदिकाल में अद्यावधि उपलब्ध अपभ्रंशेतर साहित्य से संख्या में सबसे अधिक है, विविध विषयक तथा बहुमुखी है। कुछ प्रकाशित कृतियों पर लेखक ने प्रकाश भी डाला है। इसके १. देखिए लेखक का “ साहित्यकार" जनवरी सन् १९५८ में प्रकाशित 'हिन्दी साहित्य की प्राचीनतम
गद्यरचनाएं' लेख । २. प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह-श्री दलाल सम्पादित पृ. ८६-९३. ३. वही ग्रन्थ - प. ९३. ४. हिन्दी साहित्य का इतिहास-आचार्य शुक्स-वीरगाथाकाळ.
देखिए साहित्यकार - फरवरी १९५८, में प्रकाशित लेखक का "आदिकाल का प्रकाशित हि. जै. साहित्य" शीर्षक लेख. . .
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