Book Title: Yatindrasuri Abhinandan Granth
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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मंत्री मण्डन और उसका गौरवशाली वंश दौलतसिंह लोढ़ा, ' अरविंद'
इतिहासकारों के लिये वैसे अभी भारत का अधिकांश भाग अछूता रह रहा है ऐसा कहा जा सकता है। जिसमें जैन क्षेत्र तो अस्पर्शित सा ही है । मात्र मेरा प्राग्वाट - इतिहास निकला है । वैसे तो उपकेशज्ञातीय ' ओसवाल - इतिहास' नाम का बृहद् पोथा भी प्रकाशित किया गया, परन्तु उसके रचयिताओं का प्रमुख उद्देश्य श्रीमंतों से धन ऐठना मात्र रहा और वह अधिकांश में धनदाताओं की कथा और चित्रपट्टिका ही बन कर रह गया, और इतिहासों में उसकी गणना नहीं हो सकी । इस लेख के द्वारा जाबालीपुर ( जालोर) के एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुरुष और उसके वंश का यथाप्राप्त वर्णन देने का प्रयास कर रहा हूँ । ठक्कुर आभूशाह का जैन बनना -
राजस्थान के मरुधर - जोधपुर राज्य का प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर जाबालीपुर (जालोर) स्वर्णगिरि नामक पर्वत की पौर्वात्य तलहटी में सुकडी नदी के पश्चिम तट पर अवस्थित है । स्वर्णगिरि पर १ || मील लम्बा और एक मील चौडा पर्वतभाग घेर कर लगभग १२०० फीट की ऊंचाई पर प्राचीन सुदृढ दुर्ग विनिर्मित है । यह दुर्ग राजस्थान के अति इतिहासप्रसिद्ध दुर्गों मेंसे हैं । विक्रमीय ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य तक यहां परमारों का राज्य रहा । तत्पश्चात् यहां चौहान क्षत्रियोंका राज्य रहा । अल्लाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में यह यवनों के आधिपत्य में चला गया। राज्यपरिवर्त्तनों के विरोध में भी नगर की रमणीयता में एवं समृद्धि में न्यूनता नहीं आई । तेरहवीं शताब्दी पर्यंत इसकी समृद्धता जैसे-तैसे बनी रही । जैनियों का यहां सदा प्रभाव और प्रभुत्व रहा । प्रायः राजकीय उच्च विभागों पर जैन ही नियुक्त हुआ करते थे और व्यापार भी जैनियों के करों में ही रहा। मं. मण्डन का मूल जैन पुरुष आभू था । आभू जैसा वीर था वह वैसा ही दयावंत और ईश्वरभक्त भी था । वह गढ़ चौहान था । वि. सं. १९४३ में जालोर में अजितदेवसुरि पधारे । आभूने इन महाप्रभावक आचार्य के तेज एवं व्याख्यान से प्रभावित हो कर जैनधर्म अङ्गीकृत किया । आचार्यश्री ने आभू को धर्म स्वीकार करवा कर उसको जैन वर्ग में सम्मिलित किया । आभू दृढ़ जैनधर्मी रहा ।
आभू
के पौत्र आंबड का अजमेर सम्राट् सोमेश्वर का दंडनायक बनना - आभू का पुत्र धर्मात्मा, दयालु अभयदेव था । अभयदेव का पुत्र आंबड था । + आमू प्राग्बाट, श्रीमाल, भोसवाल वर्गों में से किस वर्ण में सम्मिलित हुआ यह अभी विवादग्रस्त है ।
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