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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
ही उन्मार्गगामी होते जा रहे हैं। किन्तु याद रखो असली हीरा देखने में भले भद्दा होगा और काच का टुकडा देखने में सुन्दर होगा किन्तु मूल्य तो हीरे का ही होगा काच का नहीं। परन्तु हा ! शास्त्रकारों के कथन में हम को विश्वास नहीं और न श्रद्धा भी । हम को तो चाहिये मात्र धन धन और धन । इस विचारणामें सदैव रहकर जीवन नष्ट कर दिया । भलेलोग समझाते है, किन्तु अकल नहीं आती। आये कहां से धन संचय का भूत जो सवार है।
इस प्रकार के मंत्रों के करने वाले मांत्रिक और मंत्रेच्छुओ को सोचना चाहिये कि- “ हम ने किसी महत्पुण्योदय से यह मनुष्यावतार पाया, जिनेन्द्र धर्म भी पाया और तत्व स्वरूप भी समझा है ? तो फिर हम क्यों उससे पराङ्मुख हैं ? वीतराग प्रवचन में मानव को महान् शक्ति का स्वामि, देवों का प्रिय तथा देवों का वन्दनीय भी कहा है।
" देवा वि तं नमसंति जस्स घम्ने सया मणो” रे मानव ? देख यह कथन अपन जैसे व्यक्ति का नहीं। किन्तु जिसने अपनी आत्मशक्ति के आधार पर ही अवलम्बित होकर आत्मविकास किया है उन सर्वज्ञ सर्व दर्शि वीतराग के प्रवचन में हैं। वीतराग प्रवचन में कहा गया है कि मानव यदि प्रयत्न करता है तो वह धन पुत्र तो क्या परन्तु केवलज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। स्वर्गों के सुखो में आकण्ठ डुबे हुए, अविरति भोगासक्त देव देवी कुछ भी प्रदान करने में समर्थ नहीं हैं। तीर्थकर, चक्रवर्ती आदि भी तो मनुष्य ही थे, उन्होंने कभी किसी की ओर आशा रखकर देखा हो ऐसा हुवा ही नहीं। सोच ? श्री पाल जीने कब सिद्धचक्रजी को छोडकर अन्य की आराधना की थी? श्री नवपदाराधन से ही उनके सब कार्य सिद्ध हुवे थे। विमलेश्वर देव स्वतः ही उनकी सेवा के लिए आया था। वे भी तो मानव थे, और हम भी मानव है। मानव के द्वारा अमानवीय कार्य होना स्वयं के हाथों स्वयं का अपमान है। प्रश्न हो सकता है कि देवी देवता हमारे पर आते विघ्नों को दूर करते हैं । अतः हम उनकी आराधना करते है। समाधान भी तैयार है। अच्छा भाई मानता कि वे हमारे पर आते विघ्नों को दूर करते है, अतः हम उनकी आराधना करते हैं। इसके साथ यह भी तो सर्व सत्य सामने है कि कहीं फूलों की वर्षा और कहीं कंकु की बरसात वरसाना होतो आराधकों के मत से ये देवी देवता आ जाते हैं। परन्तु जब परधर्मी लोग धर्म झनून से उन्मत्त होकर इन के उपासको पर हमला करते हैं, उनका धन लुटते है, मन्दिर और मूर्तियों के टुकड़े करते है, और उनके सामने ही उनकी मां बहनों की इज्जत पर हाथ डालते हैं । उन आतताईओ को शिक्षा देने के लिए ये देवी देवता क्यों नहीं आते ? न जाने किस गहर में घुस जाते है, जब उनकी जीवन पर्यन्त सेवा करने वालों पर हमला होता है। समझ नहीं आता अनन्त शक्ति का भन्डार मानव इस भ्रान्त धारणा के प्रवाह में कैसे बह जाते है ? म्रम से भूले लोग कहते हैं,
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