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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
श्री दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र में साधु का व्युत्पत्यर्थ तीन प्रकार से किया है।
" साधयति ज्ञानादिशक्तिभिर्मोक्षमिति साधुः । " समतां च सर्व भूते ध्यायतीति निरुक्त न्यायात् साधुः"
" सहायको वा संयमकारिणं साधयतीति साधुः " जो ज्ञान दर्शन इत्यादि शक्तियों से मोक्ष की साधना करते हैं, या सब प्राणियों के विषय में समता का चिन्तन करते हैं, अथवा संयम पालने वाले को सहायक होते हैं वे साधु हैं। _ ऐसी अनुमोदनीय एवं स्तुत्य साधुता के धारक मुनिवरों के सत्ताईस गुण होते हैं । जो इस प्रकार है - सर्वतः प्राणातिपात विरमणादि पांच महाव्रत और रात्रीभोजन विरमण व्रत ६, पृथ्वीकायादि षद्काय के संरक्षण ६, इन्द्रिय निग्रह ५, भावविशुद्धि १, कषाय निग्रह ४, अकुशल मनवचन और काया का निरोध ३, परिषहों का सहन १
और उपसर्गों में समता १ ये २७ गुण अथवा वाह्याभ्यन्तर तप १२, निर्दोष आहार ग्रहण १, अतिक्रमादि दोष त्याग ४, द्रव्यादि अभिग्रह चार, और व्रत ६ आदि २७ गुण हैं ।
भावदया जिन के हृदपद्म में विराजमान है, ऐसे साधु मुनिराज नित्य आत्मसाधना करते हुए "कर्म से संत्रस्त जीव किस प्रकार से बचें ?" इस उपाय को सोचते हुए, क्रोध मान माया और लोभ रागद्वेषादि आभ्यन्तर शत्रुओं को परास्त करने के कार्य में लगे, भूमंडल पर विचरण कर संसारी जीवों को सन्मार्गारूढ कर मोक्ष नगर जाने के लिये धर्मरूप मार्ग का पाथेय देने वाले, पापाश्रमों का त्याग करने वाले, अंगीकृत महावतों का निर्दोषता पूर्वक पालन करने वाले मुनिराज की आदरणीय एवं प्रशंसनीय साधुवृति को नमस्कार करते हुए श्रीमद् मुनिसुन्दर सूरीश्वरजी महाराज न श्री अध्यात्म कल्पद्रुम में लिखा है कि
पर शी हुवा शकार की लशकतध्दीते सत्र से इत् संज्ञा और तस्यलोपः सूत्र से शकार का लोप होने से सर्व + इ रहा। आद्गुणः सूत्र से पूर्व पर के स्थान पर ए गुणादेश होने पर सर्वे बना । उसको सर्वत्र लव रामचन्द्रे ।।०९। सूत्र से रेप का लोप तथा वकार का द्वित्व होने से सव्व सिद्ध होता है ।
साधू संसिध्धौ धातु से कृद त के क्रियादि भ्यो उण । सत्र से उण् प्रत्यय आया तब साध् + उप बना ण का वुढू ।।३।७। सूत्र से ण की इत् संज्ञा होकर तस्यलोप: सूत्र से लोप होने पर पूर्व पर को मिलाने पर साधु सिद्ध होता है।
साधु का ख घथ घ भाम् ।८।१११८७। मूत्र से धकार का स्थानपर हकार हुवा तब साहु बना । साहु शब्द से शक्तार्थ वषड् नमः स्वस्ति स्वाहा स्वधामिः । सत्र से नमः के योग में चतुर्थी का बहुवचन प्रत्यय भ्यम् आया। चतुर्थाः षष्ठी: सूत्र से भ्यस् के स्थान पर आम आया। तब साहु + आम । जस् शस ऊसि तो दो द्वामि दीर्घः। सत्र से अजन्तांग को दीर्घ । टा आमोणः। सत्र से आम के आकार का ण हुवा और मोज्नुस्वार सूत्र से अन्त्य हल मकार का अनुस्वार हुवा तब बना साहूणं । सब को क्रमशः लिखा तब बना णमो लोए सव साहूणं ।
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