________________
विषय खंड
सिद्धम व्याकरण (प्राकृत )
यद्यपि प्राकृत कल्पलतिका, प्राकृत प्रकाश, षड्भाषा चन्द्रिका, प्राकृत मंजरी और प्राकृत लक्षण आदि अनेक प्राकृत व्याकरणें प्राप्त हैं । तथापि जिस सरलतम प्रकार से कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्र सूरीश्वरजी महाराजने श्री सिद्धहेम शद्वानुशासनके अष्टमाध्याय में विस्तार पूर्वक प्राकृत भाषा के व्याकरण को समझाया है वैसे अन्य वैयाकरणों ने नहीं । अतः यहाँ जहां जहां भी शब्दों की संस्कृत में सिद्धि की गई है, वहां वहां श्रीसिद्धम प्राकृत व्याकरण के सूत्रों को ही लिया है। संस्कृत सिद्धि लघु सिद्धान्त कौमुदि ( पाणिनी व्याकरण ) के अनुसार की है । क्यों कि मेरा प्रवेश ( अध्ययन ) पाणिनि व्याकरण का है ।
यहाँ हम क्रमशः अरिहंत सिद्धादि पांचों पदों का पूवाचार्य सम्मत अर्थ चालु और पांचों पदों की प्रक्रिया यथा स्थान पादनोंटों में लिख रहे हैं।
श्री नमस्कार महामंत्र
अरिहंतका अर्थ :
'' अरिहंत' इस शब्द का अर्थ श्रीभद्रबाहु स्वामिने श्री आवश्यक नियुक्ति में इस प्रकार किया है :
66
Jain Educationa International
५७
इन्दिय विसय कसाये, परिसहे वेयणा उवसग्गे । ए ए अरिणो हंता, अरिहंता तेण उच्चति ॥
१- ' अई ' धातु से वर्तमान कालीन कर्त अर्थ में शत् प्रत्यय लगाने से संस्कृत व्याकरणानुसार " अर्हत् " शब्द इस प्रकार बनता है :-- अई + शतृ ' लशक्कत द्विते |१| ३|८| सूत्र से शतृ के श का की इत् संज्ञा और ' तस्यलोपः ' | १| ३ |९| सूत्र से श कार का लोप हुवा। तब अ + अतृ रहा यहां ' उपदेशेऽजनुनासिक इत् ' |१| ३ |२| सूत्र से ऋकार की इत् संज्ञा और ' तस्यलोप' सूत्र से ऋकार का लोष होने पर आई+अत्
रहा ' अज्झीर्ण परेण संयोज्यम् ' न्याय से सब का सम्मेलन करने से ' अर्हत् ' यह रूप सिद्ध होता है।
6
अर्हत् ' का प्राकृत रूप ' अरिहंताणं' इस प्रकार बनता है :--
अर्हत् शब्द को ' उच्चाईति ' |८|२| १११ | सूत्र से इकार से पूर्व ' इत्' हुवा तब अर्हत्' बना, रेफ में इकार को मिलानें पर अरिहृत् बना । उगिद वांसर्वनामस्थाने घातोः | ७|१|७० ( पाणिनी के ) सूत्र से नुम् होकर अनुबन्ध का लोप होने पर अरिहन्त् रहा । 'ङ ञ णनो व्यञ्जने' | ८|१| २५ | सुत्र से नकार का अनुस्वार और प्राकृत में स्वर रहित व्यञ्जन नहीं रहता । अतः अन्त्य हल तकार में अकार भाया तब बना अरिहंत ।
है ।
' शक्तार्थवषड्नमः स्वास्ती स्वाहा स्वधामिः | २/२/२५| सूत्र से नमः के योग में चतुर्थ विभक्ति होती अतः यहां भी नमः के योग में चतुर्थी का बहुवचन प्रत्यम भ्यस् आया तब अरिहंत + भ्यस् ऐसा बना । ' चतुर्थ्याः षष्ठी : ' | ८ | ३|१३१ | सूत्र से षष्ठी का बहुवचन प्रत्यय आम् आया । तब जस्सङसित्तोदो द्वामी दीर्घः | ८|३ | १२| सुत्र से अजन्ताग्ङ को दिर्घ हुबा आम के आ का ण तथा • मोऽनुस्वारः ||११२३ सूत्र से मकार का
बना ।
' टा
C
आमोर्णः ' १८ | ३ |६| अनुस्वार
अरिहंत + आम सूत्र से होने पर अरिहंताण
ऐसा रूप सिद्ध हुवा ।
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org