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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
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(१) अपने मत या बात को सर्वश्रेष्ट नहीं समझे और दूसरों के मत को हीन बताकर, दूसरे पर अपनी बात या मत जबरदस्ती नहीं लादे ।।
(२) एक दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करे । (३) युद्ध व झगडे नहीं करने की घोषणायें ब प्रतिज्ञाये । (४) आपसी सहयोग व एक दूसरे से सीखने की प्रवृति ।
(५) दूसरों की गलतियों की तरफ देखने के बजाय अपनी गलती की तरफ ध्यान देना।
(६) दूसरों के दुःखों को अपना दुःख समझ कर उसके निवारण के उपाय सोधना।
आज सम्पूर्ण विश्व की आंखें भारत की तरफ लगी हुई है । बडे २ राजनीतिज्ञ आज यह मानने लग गये है कि राकेट -अस्त्रों से भी शक्तिशाली है अहिंसा। राकेट से पराजित देशही बरबाद नहीं होता वरन् विजयी देश भी इतना कमजोर हो जाता है कि वह भी कुछ शताद्वी तक उठ नहीं सकता। इसके विपरीत अहिंसा शस्त्र से न तो पराजित देश का सर्वनाश होता है और न विजयी देशका । बल्की दोनों देश मित्रता के सुत्र में बँध जाते है। जैन धर्म सिखाता है प्रेम और त्याग का पाठ । आज विश्वकी जनता राकेट की भुखी नहीं है, वह चिर शांति चाहती है। यह तबही सम्भव है जबकि हम त्याग और प्रेम को अपनावे और ऊपर विवरण किये हुए सिद्धान्तो का पालन करें। क्या शिखर राष्ट्र के नेतागण जरा ठंडे दिमाग से विचार कर, राकेट व अणुशस्त्रों को मानव संहार के काम में न लगाकर मानव कल्याण के काम में लाने के उपाय सोचेगे ? क्या वे राकेट व अणुशस्रों को एक कोने में पटक कर अहिंसा, त्याग, मित्रता और अनेकान्तवाद के सिद्धान्तों को लेकर आगे बढ़ेंगे और सम्पूर्ण विश्व को तृतीय महायुद्ध की विकराल व सर्वनाशता से बचायेगें?
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