Book Title: Yatindrasuri Abhinandan Granth
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
जीवन
व गूढ तत्त्वों को समझाने के लिये एक ऐसे कोष का निर्माण किया जिसकी सहायता से प्राचीन ग्रन्थों को सरल भाषा में सर्वसाधारण जनता के सामने प्रस्तुत कर सकें।
__ श्री राजेन्द्रसूरिजी के स्वर्गवास होने के बाद त्रिस्तुतिक सिद्धान्त को कई पंडितों की आलोचना का सामना करना पड़ा । समाज में इस मत को जीवित रखने के लिये तर्क व साहित्य की जरूरत थी जिसके बल पर न केवल टीका-टिप्पणी का जबाब दिया जा सके, वरन् समाज को ऐसे सिद्धांत का बोध कराया जावें जिस कि समाज रूढ़ी, ढोंग, आडम्बर व पोपलीला को छोड़कर भक्ति के असली मर्म को समझें । उस समय भक्ति का मर्म था किसी भी तरह उपासना के देवता को खुश करें जिससे धन व ऐश्वर्य की वृद्धि होवें अर्थात् इस मर्म से समाज में मोह, माया, लोभ व व्यभिचार का बीजारोपण हुआ जो कि जैन शासन, दर्शन व सिद्धान्तों के बिलकुल विरुद्ध था । गुरुदेव के अधूरे कार्यों को पूर्ण करने का श्रेय श्रीमद् यतीन्द्रसूरिजी महाराज को है जिन्होंने साहित्य को प्राथमिकता देकर जैन शासन की अद्भुत व अमूल्य सेवा की है । उन्होंने अपनी तर्कशक्ति के बलपर त्रिस्तुतिक सिद्धान्त की जड़ को मजबूत किया जिसके परिणाम - स्वरुप समाज में एक क्रान्तिकारी चेतना फैली।
विजय यतीन्द्रसूरिजी के साहित्य को हम निम्न श्रेणियों में बांट सकते हैं(१) सम्पादन-कार्य (२) ऐतिहासिक व भौगोलिक साहित्य (३) व्याख्यान-साहित्य-माला (४) धार्मिक व समालोचनात्मक लेख
(१) सम्पादन कार्य:-राजेन्द्रसूरिजी द्वारा रचित 'श्री अभिधान राजेन्द्र' महान् कोष का आपने २४ वर्ष की अल्प आयु में ही सम्पादन कर, प्रकाशित कर, उसे प्रकाशित करवाया जिससे जैन-धर्म के महान्-ग्रन्थ जो कि संस्कृत, पाली मागधी भाषा में लिखे हुए हैं, को समझने का एक बड़ा साधन मिल गया । भारतवर्ष में यह मागधी व प्राकृत भाषा का सबसे महान् कोष है ।
(२) ऐतिहासिक व भौगोलिक साहित्य:-आपने करीव १२ पुस्तकें इस श्रेणि के साहित्य पर लिखी है । आचार्य श्री ने अपने जीवन में मालवा, राजस्थान, गोड़वाड़, सिरोही, बनासकांटा, गुजरात, सौराष्ट्र आदि प्रान्तों में चौमास किये। वहां के एवं अपनी जिन्दगी में देखे हुए समस्त नगरों, तीर्थों, ग्रामों का आपने ऐतिहासिक व भौगोलिक वर्णन साधार लिखा है। इस श्रेणि में आपकी निम्न पुस्तकें बहुत प्रसिद्ध हैं
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