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अहिंसा का आदर्श
लेखक - लक्ष्मीचन्द्र जैन 'सरोज' B. 4 'शास्त्री' 'साहित्यरल'
जैनधर्म के जो प्रमुख सिद्धान्त हैं, उनमें अहिंसा का स्थान सर्वोपरि है और इस दिशा में यदि मैं कहूं कि जैन धर्म में अहिंसा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी संद्धान्तिक बल नहीं होता तो भी जैनधर्म आज जैसा ही लोकप्रिय होता क्यों कि आचार्य आशाधर के शब्दों में धर्म [ अहिंसा हि लक्खणो घम्मो ] अहिंसा लक्षणवाला है और यह तो आबालवृध्द सभी ही जानते हैं कि इस युग में जैन धर्म के प्रसारक भगवान महावीर ने सामन्तवादी कर्मकाण्डी हिंसामय वातावरण में पुनः अहिंसा की प्रतिष्ठा की और नरमेध - अश्वमेध जैसे अनेक यज्ञों के स्थान में आत्मिक यज्ञ करने के लिये प्रेरणा दी । प्रस्तुत प्रसंग में मुझे ऐसा लगता, जसे महावीर और अहिंसा- दोनों ही एक दूसरे के पूरक और प्रतीक हों। मेरे विचारके घरातल में तो जो महावीर है, वही अहिंसक है और जो अहिंसक है, वही महावीर है ।
अहिंसा की असाधरणता
लोग कहते हैं ." गांधीजी ने अहिंसात्मक संग्रामद्वारा दो शताब्दियों से पगधीन रहे देशको स्वतन्त्र कर दिया " और फ्रान्स के विख्यात विद्वान रोम्यांरोलां ने कहा - 'जिन सन्तोंने हिंसा के मध्य अहिंसा की अवतारणा की, वें निश्चय ही न्यूटन से अधिक बुद्धिमान और वेलिंगटन से भी बढ़कर वीर थे । ' डाक्टर durgerद के शब्दों में - " सबसे ऊँचा आदर्श, जिसकी कल्पना मानवीय मस्तिष्ककर सकता है, अहिंसा है । अहिंसा के सिद्धान्त का जितना व्यवहार किया जावेगा उतनी ही मात्रा में सुखशान्ति विश्व-मण्डल में बढ़ेगी । लौकिक जीवन में सुख और शान्ति के लिये आन्तरिक सामञ्जस्य की बड़ी आवश्यक्ता है और जो अहिंसा के बिना सम्भव नहीं है । "
भारतवर्ष के राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्रप्रसाद ने 'आत्मकथा' में यह कहकर अहिंसा की असाधारणता प्रकट की" अहिंसा का सिद्धान्त अनोखा सिद्धान्त है । इतने बड़े पैमाने पर विशेषकर इतनी बडी शक्ति के हाथों (अँगरेजों ) से स्वराज्य प्राप्त करने में उसका उपयोग और भी अनोखा है । बहुतेरों ने इसे नीतिरूप में माना है और सच्चाई से इसे बर्त्तते हैं ।" दो विश्व युध्दों की विभीषिकाओं के बीच भी मुस्कराते रहनेवाले शान्ति के एकमात्र सेनानी महात्मा गांधी ने अपने निबन्ध ' तलवारका उसूल ' में निम्नलिखित पंक्तियां लिखकर अहिंसापर अपार आस्था अभिव्यक्त की । 'अहिंसा धर्म केवल ऋषियों-महात्माओं के लिये नहीं, वह तो आम लोगोंके लिये भी है । अहिंसा, हम मनुष्यों की प्रकृति का कानून है । जिन
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