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(२७) - ९॥ और जो कह्या ज्ञानी समान मुमुक्षुभी कर्मफल नही भोगेगा सोभी मिथ्या कहा है. का. देते ज्ञानीके कर्म तो ब्रह्मात्मैकत्वज्ञानसे कर्मोपादान अविद्याके नाश होने पर नाश होवे है; मुमुक्षुको एकत्वज्ञान के अभावते कर्मोपादान अविद्याकै सद्भाव होनेपर कैसे कर्म नाश होवगेकिंतु नही नाश होवेगा. 'नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि।अर्थ-यहःजो. विनाभोगे शतकोटीकल्पपर्यंतभी कर्मोका नाश नही होता. इस प्रमाणसे मुमुक्ष विमुक्त नही होगा किंतु ज्ञानविना अज्ञानके सद्भावसे जन्मको ही प्राप्त होवेगा.
१॥और जो कह्या साधारणप्रायश्चित्त गंगास्नानादिकास सर्वपाप नाश होवेगे सो यह कहनाभी मिथ्या है. काहेते जो गंगास्नानादिक कर्म सर्वपापोंका नाशक तो अंतःकरणकी शुद्धि करके ज्ञानोत्पत्तिद्वारा होवे है. तुमारे मतमे ज्ञानका अंगीकार कीया नहीं. यांते ज्ञानबिना कर्मोपादान अविद्याके सद्भाव होनेते गंगास्नानादिकभी सर्वपापनाशक बने नही. किंतु कर्मवशते जन्मही पावेगा, अज्ञानीहोनेते. और जो कह्या नित्य, नैमित्तिक, कर्ममे जो क्लेश होवे है तिसते संचितपाप नष्ट होते है. सो अनंतजन्मके पाप इस एक जन्मके नित्य, नैमित्तिकके करनेमे जो क्लेश तिससे नाश होवेगे,
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