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( १३ )
हे मुने जो तुम निर्मलबुध्धिवाले हो तो अपरोक्षज्ञान वास्ते इतना उपदेश बहुत है नहीतो बहुत उपदेशसेभी कछु फल नही है हे सौम्य अब तुमको नमस्कार हो हूं जातीहों एसे कहिकरके राजा जनकसे पूजा पाई अदृश भई ॥ इति एकोनविंश कमलं पूर्ण ॥
१ ॥ अथ विंशति कमलमे यक्ष राजपुत्र संवाद ॥ किसी कालविषे एक वन में भ्रातासहित भक्षणार्थ यक्ष करके ग्रहणकीया कोई राजपुत्र यक्षको कहता भया ॥ हे यक्षराज जो किसीभी पदार्थको हमसे लेकर छोडदेवो तो मै तिसी पदार्थकों तुमारेतांई देकर हम भ्रातासहित स्वराजधानीको चले जावों तब यक्ष बोल्या हे राजपुत्र तुम हमारे प्रभोका उत्तर देवो तो तुमको भ्रातासमेत त्यागकरोंगा तब राजपुत्रने कहा जो पूछोगे हम तिसका प्रत्युत्तर देवेशे तब यक्षराज ब्रह्मज्ञान विषयक बहुतप्रश्न करता है राजपुत्रभी उतर देता है तिसको कहते है ॥
२ || हे राजकुमार आकाशसे भी विस्तारवाला कौन है तथा परमाणुसेभी सूक्ष्म कौन है तिलका स्वरूप कैसा है तथा सो रहिता कहां है सो समाधान करो ॥ राजपुत्र उवाच - हे यक्षराज परमात्मा आकाशते विस्तारवाला है सोई परमाणुसें सूक्ष्म है
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