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( ५३ ) उत्तर हमको कहना चाहीये एसे शिष्यके वचन श्रवण कर ॥ श्रीगुरुरुवाच-हें विदन् कर्मविरचित तो यह स्थूल शरीर है तिसकी प्रारब्ध कहनी चा. हाये जो जन्मरहित आत्मा है तिसकी प्रारब्ध केसे बने जिसको एसा ज्ञान है आत्मा कर्मसे उत्पन्न हवा नहि तिस ज्ञानीके जीवन्मुक्तिमे ब्रह्मवेत्ताको संदेह नहीं है.। १ । जिसकी देहोऽहं इस प्रकारकी निष्ठा है तब तिसकी प्रारब्ध कही जाती है ज्ञानी ब्रह्मरूप है देहरूप नही होनेते ज्ञानीकी प्रारब्ध है यह बुद्धि त्यागने योग्य है. । २ । जो शरीरकी प्रारब्ध कहो तो यहभी मूढता है काहेते रज्जुमे सर्प समान अध्यस्तदेहको सत्ता ही नही तो उत्प. त्ति वा प्रारब्ध कैसे मानीये ॥३॥
१५॥ रज्जुमे सर्पका जन्म नही तो नाश कैसे मानीये जब ज्ञानसे अज्ञानसहित कार्यदेहकों असत्य जान लीया तो असत्देहकी प्रारब्ध कैसे होय सकती है.। ४ । जव मूरोंकों संदेह होवे जो ज्ञानके पीछे ज्ञानीका देह कैसे रहेगा तो प्रारब्धसें रहि सकता है एसे मूढोके शांति वास्ते श्रु. तिने प्रारब्धसे एसे मुखौके मनके संशय शमनार्थ कहा है.। ५। ज्ञानके होने परभी प्रारब्ध नाश नही होती अब इसका खंडन करते ह.
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