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( ७६ ) वा विलासार्थ कर्म करे सो कहो. जो शरीररक्षार्थ कहो तो ज्ञानी जानता है यत्न विना शरीरकी रक्षा कर्म करेंगे स्वयं अजगरको बालककी, उन्मत्तकी पशुपक्षीयोंके पुत्रोंकी रक्षासमान स्वशरीरकी रक्षार्थ व्यर्थ चेष्टा नही करता है ॥ “ योमे गर्भगतस्यादौ वृत्ति कल्पित वान्पयः । शेषवृत्तिविधानेषु सोऽयं सुप्तोस्ति मृतोस्ति किं ॥” अर्थ-जिसने जन्मसे प्रथम दुग्ध उत्पन्न कर राखा वह अब न सोया है न मर गया है. जो कुटुंबरक्षार्थ कहो तो बनता नही. काहेते. जे ज्ञानो जन है ते तिस ब्रह्मको जान करके निवृत कीया है संपूर्ण देतदृष्टि तथा पुत्रेच्छा लोकेच्छा, धनेच्छा ते रहितं भिक्षाहार करते है तिनोंको कुटुंब ही नही है तो तिसकी रक्षार्थभी ब्रह्मवेत्ता प्रवृत्त नही होते एसे श्रुतिमे कहा है जो विलासार्थ. कहो तो आत्मध्यानसे विना अन्यत्र विलासका विषय नही देखता हूवा विद्वान् लिस लीयेभी कौमे प्रवृत्त नही होता ॥ . ३॥ परलोकार्थ ज्ञानीकी कर्मोंमे प्रवृत्ति होवे जो एसे कहो तो भी स्वर्गार्थ मोक्षार्थ आत्मशुद्धयर्थ वा ॥ नाद्यः, पूर्णकाम, कृतार्थ महात्माकी इसी ज्ञानी अंतःकरणमे सर्वकामनाका अभाव वेदमे श्रवणते तिसकी स्वर्ग प्राप्ति वास्ते कर्मोंमे प्रवृत्ति
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