Book Title: Vedant Prakaranam
Author(s): Vigyananand Pandit
Publisher: Sarasvati Chapkhanu

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Page 264
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९३ ) अथ ग्रंथसमाप्तौ गोपीगीताऽष्टकमिदं मंगलस्थानीयं न खलु गोपिका नंदनो भवान्निखिलदेहीना मंतरात्मदृक् ॥ विखनसार्थितो विश्वगुप्तये सख उदेयिवान् सात्वतांकुले ॥ १ ॥ अर्थः- गोपीगण स्तुति कर्ते है । हे सखे जब असुरराजा वोंसे विश्वदुःखी भयी तबतिस विश्वकी रक्षावास्ते ब्रह्माकी प्रार्थनाकों अंगीकार करके यदुकुलमे आपने अवतार लिया है यांत आप स देहधारीयोंके अंतःकरणोंका साक्षी हो आप यशोधाका पुत्र नही हो १ चलसि यद्वजाच्चारयन्यशून्नलिनसुंदरं नाथते पदम् । शिलतृणांकुरैः सीदतीति नः कलिलतां मनः कांत गच्छति ॥ २ ॥ अर्थ :- हे प्रियतम गायोंके चरावने वास्तेआप जवीजवी व्रजसे चले जाते हो तवीतवी आपके चरणकमल कमलवत्कोमल तृण कंकरादिसे संकट पावते होवेंगेएसी चिंतामे मेरा चित सर्वदा चूर्णरहिता वा कालक्षेप कर्ता है ।। २ ।। अटति यद्भवानह्नि काननं त्रुटिर्युगायते त्वामपश्यताम् कुटिलकुंतलं श्रीमुखं चते जड उदीक्षतां पक्ष्मकृदृशाम् ॥ ३ ॥ अर्थ :- हे कांत आप जब दिनमें वनविषे चले जाते हो तबी आपसे बिना क्षिणमात्र भी युगसमान असा दुःखले व्यतीत करना परता है तिस आपके कुटिल काले केश वाले मुखारविंद के दर्शनमे निमन नयनपर ब्रह्माने प्रेमवृद्धिवास्ते पक्ष्मकी स्थिति करी है. For Private and Personal Use Only

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