Book Title: Vedant Prakaranam
Author(s): Vigyananand Pandit
Publisher: Sarasvati Chapkhanu

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Page 266
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९५ ) ॥ भवभयापहं मुक्तिदायकं सदसदात्मकं सच्चिदद्वयम् । परमपावनं द्वैतवर्जितं तददमस्मि यत्सत्यमव्ययम् ॥ अर्थ :- हे सर्वव्यापिन् जो आप भवभय हारी मोक्ष कारी स्थूलसूक्ष्मरूप धारी सच्चिदानंद अद्वय परमपावत द्वैत वर्जित अविनाशी ब्रह्म हो तमसीति वेदप्रमाणसे सो मै है ॥ ७ ॥ असुरनाशकं सौख्यदं सुराशिखिलकारणं सर्वशासनम् कमलनेत्रकं पद्महस्तगं चरणपंकजं सर्वदा भजे ॥ अर्थ:- जो आप असुरनाशक हो तथा देवतावोंकों परमसुख प्रदाता हो सर्वका कारण तथा सर्वको स्वाधीन रखने वाला तथा करमे मर्ता कमलनयन कमलवत्कोमल चरणवाले जो आप तिसकं हूं सर्वदा तन मन वाणी से सेवन कर्ता हूं ॥ ८ ॥ ॐ ॥ इति मदालसा स्तोत्रं सटीक गोपीगीताष्टकं च समाप्तं 'श्लोकौ. माद्रीगुरू नृनाथस्य वाहना भववाहनाः पांडवही रत्नानि ब्रह्मां समलंकृतम् तद्भरि श्वेत कृष्णानां विजयाह्नौ खेदिने || पुस्तकं पद्मराशीदं श्रीकृष्णायसमर्पितम् दोहा ७० २ नातसखा माताविपन भ्रातरामकेकाल वंदनसह पदमे धरूं कमलाकर कीमाल For Private and Personal Use Only

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