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( ८५ )
स्वसहित सर्व संसारको विमुक्तब्रह्मरूप देखने वाले ब्रह्मवेत्ता संन्यासीको स्वदृष्टिसे बंध प्राणीकोई नही देखता हूवा तिनोपर अनुग्रहदृष्टि करनेका निमित्त दी नही तो अनुग्रह कैसा करेगा तहां प्रमाण है. मै किससे मुक्तिकी यांचना करों पहिले दमकों बांधा किसने है बडा आश्चर्य है. हुं बंधनरहित हूवाभी मुक्तिकी इच्छा करता हूं यांते बालचेष्टा समान ह मारी सार्थकता वाली एसी इच्छा बनती ही नही तैसे गीता में कहा है जैसे मे अपनेको सुखदुःखसे रहित आत्मा अनुभव कीया है तैसे मेरे उपमाहष्टांत सर्व सुखदुःख रहित विमुक्तिको प्राप्त हूवे है तिनोपर मेरा उपदेशरूप अनुग्रह नही बनता एसे जाननेवालेको भगवान् परमयोगी नाम सिद्धज्ञानी एसी संज्ञाराखी है तिसको भेददृष्टि होती ही नही ॥
८ || जैसे देवदत्त सर्वसे प्रथम भोजन करके अपनेको तृप्त मानता है दूसरे को क्षुधातुर देखता है जैसे यज्ञदत्त निद्राते ऊठकर अपने को ही जागता मानता है दूसरे सुप्तोको सोया ही मानता है तैसे सिद्धज्ञानी नही किंतु ज्ञानी जब ब्रह्माहमस्मि इस ज्ञानसे अपनेको विमुक्त अनुभव करता है तब सकूं अपने साथ विमुक्त हुए ही देखता है जैसे बुडिमान् अपनेको चेतन जानकरके ब्रह्मांडमे जीवित
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