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( ५५ ) ये शास्त्रमे कहा है तोभी मिथ्या है.।६काहेते.जो कहा है सर्व कर्म ज्ञानीके नाश होते है जब परावरको जानता है यहां सर्वपदसे प्रारब्धकर्मकाभी वेद भगवान् निषेध करे है एसे निश्चय करना. ॥ भिद्यते हृहयप्रथिः छिचंते सर्वसंशयाः क्षीयंते चास्य कर्माणि तस्मिदृष्टे परावरे ॥ ७॥
१६ ॥ यहां प्रसंगमे जो अद्वैत है अर्थात् प्रार. धादिकर्म वर्जित है तिस विषे भागवत उक्त सनकादिक हंस अरु ब्रह्माका संवाद है. सनकादिक कहते है हे ब्रह्मदेव मेरा मन विषयोमे लंपट भया है तथा विषय मेरे मन विषे निवास कर रहे है जन्ममरणसे मुक्तिकी इच्छावाले के ये विषय कैसे छूटेगे । ८ । ब्रह्मदेवका मन मायामे रमताथा उत्तर देनमे असमर्थ हवा ।१। नारायणका स्मरण कीया तब हरिः हसरूपलें तहां प्रगट भये सनकादिक तिसको न जानकर पूछते भये हे तेजमूर्ते आप कवन हो हलहरिः बोले ॥ दैतमे तुम कवन हो एसा प्रय बनता है द्वैतके न होनेसे मैभी किसाको उत्तर देवो यह तुम बुद्धिमान हो तो वतावो देह दृष्टि से प्रश्न कहो तौभी सर्वमे पंचभूतोंके समान हूवे तुम कवन हो ऐसा तुमारा प्रभ निरर्थक है ॥ ११॥
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