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(५७) १७॥ शिष्य उवाच-जब अद्वैत ही सिद्धभया तब गुरुका उपदेशभी निरर्थक भया इसका क्या उत्तर है सो कहो ॥ श्रीगुरुरुवाचजब अपरोक्षज्ञान भया तो निरर्थक है एसे वशिष्ठजीभी कहते है “ महाबाहो श्रीरामचंद्रजी शास्त्र ज्ञानके कारण नही है शास्त्रोंको शब्दात्मक होनेसे अरु परम पद तो नाम रहित है तिलकों शास्त्र क्या उपदेश करनेमे समर्थ होई सकता है। १२ ।” जब जिज्ञासूको जानने की ईच्छा भई यह जगत् ब्रह्मके सर्व स्वरूपमे है अथवा एक अंशमे है तब वेदने निरंशब्रह्ममेभी अंशकी मिथ्या कल्पना करके कहा एक अंशमे है एसे तिसशिष्यके प्रश्नानुमार कहा है. काहेते. श्रुति श्रोताके हितकी इच्छा करे है॥१३॥
१८॥ शिष्य उवाच-हे गुरो जो कर्म है ते देहवाणीमन इनोंसें उत्पन्न होवे हे अरु देहवाणीबुद्धि ये तीनो काँसे उत्पन्न होवे है यांते अन्योन्याश्रयसें कौन किससे उत्पन्न होवे है उत्तर ॥ जै. से बीजते तरु तरुसें बीज परस्पर उत्पन्न होते है यांते प्रथम कौन किसत्ते भया इसमे योगीजनके दृालसे दोनो समही मायासे उत्पन्न होते है। १४ । जैसे पूर्णयोगी विश्वामित्रादि उपादानसामग्रीसें विनाही स्वर्ग सर्वविभूतिसंपन्नको योगमायासे रचा है ॥१५॥
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