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( ६७ ) सो यह कहनाभी बनता नही. काहेते.जो मोक्ष कर्माधीन नही तथा मोक्षकालमे विश्वमाया निवृत्त हो जावे है एसे कहनेवाली श्रुतिका विरोधरूप बाधा होनेसेभी आपका कहना ठीक नहीं ॥
॥ समाधानं-यह जितनी वार्ता आपने कही सो योग्य कही है परंतु यहां वसिष्ठभगवान्का तो यह अभिप्राय है सो तुम श्रवण करो. जो जीव है सो ब्रह्माकाशते भिन्न नहीं है किंतु ब्रह्म ही मायासें नाना अंतःकरणोपाधियोंमे नाना रूप होइ भासता है तिस मायामे जो कामकर्मवासना है तिसके अनुसार संसारीकी न्याई प्रकाशता दुवा जीव हूं एसे कहनेमे आवे है यहां जब बहुत अंतःकरण मिल करके एक मोटा जीवकी उपाधि बने है तबबडा तेजस्वी अर्जुन जैसा जीव बने है जैसे अनेक दीपक मिलनसे मशाल बने है तद्वत्. जब कोई एकजीव कृष्णादि देवोंकी अपासनासे वा योगसे तथा विरोधी अनेक देशोंमे भोग देनेहारे कर्म उदय होवे तिससे नानारूप धारे है तब एक से नानाभी होवे है यहां जब बहुत जीवोंका समान देशकाल भोग्य समान कामकर्मवासनावोंका उद्भव होवे है तब तिन नाना जीवोंके भोग वास्ते नानाजीवोके उपाधियोंको मिलाय एक उपाधि बननेसे
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