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एक जीव बन जाता है सो तबतक कि जबतक विरोधी देश भोग देने हारे कर्मोंका उत्पत्ति होवे तबतक लाघवते एक शरीर उत्पन्न होवे है.
५ ॥ जैसे युधिष्ठिरका जीव जो है सो धर्म इंद्र दोनोके मिलने से एक जीव भया है अरु भीमका जीव वायु इंद्रके मिलनेसें एकजीव भया है तैसे अर्जुनका जीव दो इंद्र तथा नरसे भया है एवं नकुलसददेवका जीव इंद्र अश्वनीकुमारसे भया है तथा द्रुपदीका जीव नारायणीलक्ष्मीगौरीके अंशोसे बना
यह वार्ता केंद्रोपाख्यानादिको के अवलोकन करनेसे जानने आवे है ॥
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६ ॥ जैसे एकजीवको अनेकोपाधिसें अनेकजीवभाव होता है सो श्रवण करो. दितिने कश्यपसें इंद्रनाशक पुत्र एकदेह तथा एकजीववाला जब गंर्भ धारण कीया तब इंद्र अपने शत्रुके नाश वास्ते छिद्र देखता हूवा दिती माताकी कपटसे सेवा करता भया जब दिति अपवित्र होय नींद करती भइ तब इंद्रने गर्भमे शत्रुके सप्त कटका कीया तब सप्तजीव भया फिर एकैकके सप्तसप्त टुकडे कीये तो एककम पचास पवन भये जब इंद्रसे सर्वोने कहा मै सर्व तेरे दास है तब छोड दीया एसे एकसे उपाधियों कर नाना होते है. और जैसे. बट- इक्षु. दुर्वा एक
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