Book Title: Vedant Prakaranam
Author(s): Vigyananand Pandit
Publisher: Sarasvati Chapkhanu

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Page 236
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६५) ३॥ शंका-उपरोक्त यह वारता बन सकती नही है जो चार शरीरोंमे एकही विपश्चित् जीव सिद्धयोगी समान बहुत शरीरोंमे प्रवेश करके प्रथक स्थिति करे पश्चिम शरीरमें विष्णु भगवानकी कृपासे ज्ञानोपदेशद्वारा विदेहमोक्षभया तो फिर दुसरा कौन विपश्चित् जीव रह गया जो चंद्रमाकी उपासनाद्वारा चंद्रलोकमे निवास करेगा. एसा नही होता जो एक कालमे एकजीवकी कहूं मुक्ति होवे कहूं बंधनता होवे जो एसे होवे तो मोक्षफल दोकटकावाला होवेगा तथा परिच्छिन्नता धर्मवाला होवेगा और जो एसे मानो जब चारदेह भये तो एकजीवसे चार विभाग होगये अथवा चारजीव उत्पन्न भये सोभी अयोग्य है. काहेते. चार भाग होनेते तो पूर्व एकजीवका ही नाश होवगा यदि चारजीवोंकी उत्पत्ति मानोगे तो तिन जीवोंके उत्पत्तियोग्य काम कर्मवासनादि कारण सामग्रीके अभाव होनेते तिनो चारोंको जन्मादि संसारकी प्राप्तिका ही असंभव होवेगा और जो कहो जैसे भोग नानाप्रकारके होते है तैसे बंधमोक्षभी नानाप्रकारका मानना होवेगा. काहेते. जो जहां विरोध देख परे तहां कमसे वा मायासे मोक्षकी विचित्रता रूप, विरोध मान कर निरवाद करीये तो बाधा नही. For Private and Personal Use Only

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