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( ३७ ) २॥ यद्यपि संपूर्ण अज्ञानी मरणकालविषे देहपुत्रादिकोमे अहंता ममता छोडदेते है तथापि जे पुरुष ब्रह्माहमस्मि इस ज्ञानकरके जीवतकालमे अ. हंता ममताका त्याग करते है ते सत्पुरुषही जीवन्मुक्तभये विदेहमुक्तिकोंभी प्राप्तहोते है. यांते अंत:करणमे जो वासनावोंका निवास है वही बंध कहा है अरु वासनावोंकाजो विनाश है वही मोक्ष कहा है।
३॥ तहां वसिष्ठजी कहे हैं मोक्ष स्वर्गमे नही तथा पृथ्वीमेभी मोक्ष नही सर्व वासनका जो विनाश सो बुद्धिमान् मोक्ष मानते है. हे रामजी चंद्रमा कंठलग्न होवे तोभी अंतःकरणको एसी शीतलता नही देता. जैसी शीतलता सर्व वासनाका त्याग हृदयमे देता है. जब सो वासनाका त्याग ब्रह्मज्ञानसे होता है तब यह जीवन्मुक्त हुवा विदेहमोक्षकोभी प्राप्त होता है ॥ “ज्ञानादेवतु कैवल्यम्” इति ॥इस श्रुतिनेभी एसेही कहा है ॥
४॥ शिष्य उवाच-जीवन्मुक्ति अरु विदेहमुक्तिका क्याभेद है श्रीगुरुरुवाच-आत्माके आश्रित जा अविद्या है तिसकी आवरणरूप अरु विक्षेपरूप दो शक्ति है जो विक्षेपशक्ति है सो दो प्रकारकी है एक देहपुत्रादिकोंमे रागद्देषरूप है अपर संसारकी प्रतीतिका हेतुरूप है इसरीतिसे अज्ञान आवरण
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