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( ३९ )
तथा द्विविध विक्षेपशक्ति ये संपूर्णका नाम बंध कहा है जब ज्ञानसें अज्ञान आवरण तथा देहादिकोंमे रागद्वेष के प्रतीतिका कारण विक्षेपशक्ति नष्ट हो जावे है तब जीवन्मुक्ति सिद्ध होवे है जब प्रारब्धकर्मभी भोगद्वारा नष्ट होवे है तब संसारकी प्रतीतिका हेतुभूत विक्षेप शक्तिभी प्रतिबंधक के अभाव हुए नाशहोती है तिसते अनंतर विदेहमुक्ति सिद्धहोवे है यही जीवन्मुक्ति विदेदमुक्तिका भेद जानना ॥
५ ॥ शिष्य उवाच - ब्रह्मज्ञान जो है सो अज्ञान आवरण रागद्वेषकी हेतुभूत विक्षेपशक्ति इन सर्वका हनन करके संसारके प्रतीतिका हेतुभूत विक्षेपशक्तिको हनन करने मे क्यों समर्थ नही होता तिसमेभी अज्ञानार्यता तुल्यही है तो क्यों नही हनन करता || श्रीगुरुरुवाच - हे शिष्य जिस प्रारब्धकर्मने यह देह उत्पन्न कीया है ते कर्म ज्ञानीको भोग देने वास्ते संसारके प्रतीतिका देतुभूत विक्षेपशक्तिके नाश करनेमे प्रतिबंधक है जब ज्ञानीको भोग देकरके प्रार
कर्म नाशहोवे है तब प्रतिबंधक के नाशभये संसारके प्रतीति कारणीभूत विक्षेपशक्तिभी स्वयं नाश होजावे है जैसे कतकरेणु मैलके नाश दोयां स्वयं नाशपावे है तैसे जब नाश होवे है तब यह जीवन्मुक्त भी विदेहमुक्तिको सुखसेंही प्राप्त होवे है ॥
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