________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
. ( २७ ) ॥ यक्षप्रश्नः-कृष्णं वंदे जगद्गुरुं ॥ मैं जगतके गुरु श्रीकृष्णचंद्रको वंदना करता हूं अन्यत्र लिखा है गोपीयोंके वस्त्रोंको लेगया एसे दोनो विरोधी वाक्योंका क्या समाधान है । उत्तरं-श्रीकृष्णगीतामें कहिता है सर्वकामै आत्मा हूं सर्वमे स्थित हूं सर्वकी आदि मध्य अंत मैही हूं यह जो स्वयं श्रीकृष्णचंद्रने कथनकीया है सो कहनाही यथार्थ है अरु मान्य है यामे संशय नहीं एवं संजयभी कहते है जोमै भगवानकों एप्तादेखा है जो सहस्रसूर्य कदाचित् आकाशमे उदय होवे तौभी श्रीकृष्णचंद्रके तेज समान कदाचित्सदृश होवे अर्थात् भगवानका प्रकाश तिससेंभी अधिक होवे तो एसे कहि सकता हूं एसा मैने विश्वरूपदर्शनकालमे भगवानकादर्शन कीया है सो हे यक्ष एसा कामातुरोका कहूं तेज होसकता है अरु कृष्णपदका अर्थ ब्रह्म है एसे पं. डित कहते है॥ कृषिभूवाचकः शब्दो णश्च निवृत्तिः कीर्तिता । तयोरेक्यं परं ब्रह्म कृष्ण इत्यभिधीयते ॥ अर्थ-कृशि नाम सत्यका है | यह आनंदका नाम है सोई “सत्यं ज्ञानमनंतं ब्रह्म' इस श्रुतिसे कृष्ण नाम ब्रह्मका जानना एसेश्रवण करके तब॥यक्षसो. राज कुमारकाश्रीकृष्णमेपूर्णप्रेमदेखकरकेफिरभी॥
For Private and Personal Use Only