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( २९ ) २॥ यक्ष प्रश्न करता भया-हे बुद्धिमान् रा. जपुत्र तब कृष्णचंद्रमे कामकीवार्ता क्यों कही है ॥ कुमारबोले. हे यक्ष जैसे स्वभाववाला मनुष्यहोता है तैसी कथावोंके श्रवणमे प्रेम रखता है यांते पामर कामातुर पुरुषोंके विमोक्षार्थ श्रीव्यासादि महर्षियोंने कृष्ण, शंकर, सूर्य, इंद्र, चंद्रादिकोमे कामकथाके कथनरूपी लोभ दिखाय करके पामरोंकी तिन कथा श्रवणमे प्रवृत्ति कराई है-पश्चात् काम क्रोध लोभादिवाले मनुष्योंकों एसा एसा इसलोकमे ताडनअपमानरूप संकट परलोकमे नरकोंमे निवासरूप कामादिकोका फल नानाकथावों द्वारा दिखाय तिन कामलोभदोषोंसे निवृत्ति करवायकर शुभकर्मका फल नानाविभूतियों दिखाय तिनोमे लगाया पश्चात् “॥क्षीणे-पुण्ये मर्त्यलोकं विशांति ॥" एसे श्रवण करवाय ॥ निष्काम कर्मोंमे प्रवृत्ति करवाई।तिससे जब तिन पामरोंकाभी चित्त शुद्ध भया । तब जा. नद्वारा नीचभी जीवन्मुक्त सुखका अनुभव करके विदेहमुक्तिको प्राप्तभये फिर जन्म मरणमे नहीं आवते “॥ यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्वाम परमं ममा" इस अर्थमे श्रीकृष्णचंद्रविषे कामादिकोंके वर्णनका प्रयोजन है यांते मुनियोंमे तथा ब्रह्मा शिव चंद्र इंद्रादिकोंमे कामादि कथनकाभी यही प्रयोजन है.
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