________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(६३) ये ज्ञानी अभ्यासवलसें अद्वैतमे सर्वदा स्थिति करे है, तिसके विशेष ज्ञान संपूर्ण निवृत्त होय जाता है. इस भूमिको सुषुप्तिनाम पंचम भूमिका कहते है. ८ यहां ज्ञानी बहु काल अंतर्मुख रहता है, कोइ काल देहयात्रा मात्र करे है. थका हुवा निद्रालु समान देख परता है. ॥९॥
३॥ यहां ज्ञानी वासनारहित दृढाभ्याससे गाढ सुषुप्ति नामवाली षष्ठी भूमीको पावता है.॥१०॥ . जहां न सत्का भान न असत्का भान होवे है. जहां में वा तुम भासता नही, एक तथा द्वैतका भान रहता नही, निर्विकल्पही रहता है. ॥ ११ ॥
जब दूसग बहु यत्न करे निर्विकल्प स्थितिसे जगाय भोजन करावे है, तब पदार्थ भावनी षष्ठी भूमिका कही है.॥१२॥ ___ जब यह ज्ञानी एकरूप रहजावे उठे नही ऐसे षट् नूमिकाका क्रमसे अभ्यास करता है तब सा तुर्य भूमिका कही है. इस सप्तमी जूमिकामें थोरे दिन विषे शरीर स्वयं नाश होता है. ॥ १३ ॥
इति अष्टमकमलमे सप्त भूमिका समाप्त ॥ १॥ अथ नवमकमलमे राजयोगी सुरघुपरिघका
__ संवाद वर्णन होवेगा ॥ ॐ
For Private and Personal Use Only