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(९३)
॥अथ द्वादश कमलमे अधिकारीका लक्षण सुनो।
१॥ अब अधिकारीके वैराग्य विवेक शमादि मुमुक्षुता. इन साधन चतुष्टयका. यथाक्रमते वर्णन करते है. पश्चात् चतुष्टय साधन संपन्न धर्मात्मा महाराज रंतिदेवकी कथा तुमको श्रवण करावेंगे अब वैराग्य विवेकवाले पुरुषोत्तमका लक्षण सुनो. - २॥ वैरागीपुरुष एसे होते है जो ब्रह्मलोक, शिवलोक, इंद्रलोक, इन सर्वलोकोकों परस्पर रागद्वेषरूप अग्निसे पूर्ण जानकर इनोंके प्राप्तिकी ईच्छाही नही करते; जैस ब्रह्मलोकमे दक्षको शिवजीने नभस्कार न कीया तो दक्षने शंभुको शाप दिया. फिर कवी तिसही ब्रह्मलोकमे विष्णुदेवको सनत्कुमारने नमस्कार न कीया, यांते परस्पर शाप दीया. जनक तथा वशिष्ट एवं विश्वामित्र वशिष्ट परस्पर शाप देत भये है इत्यादि पुराणोक्त सहस्र वार्ता प्रसिद्ध है. इससे वैरागी इनों परलोक तथा सिद्धियोंकी आकांक्षाही नही करते हुए नित्यानंद स्वतंत्र स्वात्मसुखमे सर्वदा शांत रहते है अथवा रहनकी इच्छा करते है. ब्रह्मलोकादि इतने पराधीन है सो कहां तक कहीये यांते विवेकी पुरुष नित्यात्माको जानके तदाकारही रहते हैं, वा तदाकार रहनेकी सर्वदा इच्छा करते है. अनित्य देहादिकोंकी उपेक्षा करे है
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