________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६ ॥ श्रीगुरुरुवाच हे शुभमते जैसे स्वप्नमें किसी पुरुषने निजनारासेसुत उत्पन्नदेखा कुलालसे कुंभ उत्पन्नदेखा तहां स्वस्त्रीको कारणता. पुत्रमे का. र्यता तैसे कुलालको कारणता, कुभको कार्यता निश्चय करता है तैसे जाग्रत्मेभी सर्वजन किसीको कारणता किसीको कार्यता अद्यिाके बलते निश्चय करते है सो यथार्थ नही है स्वप्नसमान मिथ्याही है ।
१७ ॥ और जा श्रुति तुमने कही आत्माते आकाश उत्पन्नभया आकाशते वायुः सा यह श्रुति मंदबुद्धि पुरुषके मोक्षवास्ते ध्यानार्थ आत्माते जगत्की उत्पत्ति कहती है कोइ उत्पत्ति कहने में श्रुतिका तात्पर्य नहीं है जो दुराग्रहसे श्रुतिके तात्पर्यको उत्पत्तिमे स्वीकार करोगे तो. ब्रह्म. कारणकार्य भावसे रहित है एसे कहनेवाली श्रुतिका वि. रोध होवेगा यांते कार्यजगत्का कारणब्रह्मसे भेद नही है सोब्रह्म मै हूं एसे मंदबुद्धिपुरुषभी ध्यानकरके मुक्तिको प्राप्तहोवे है. इस अर्थमे श्रुतिका तात्पर्य है " तद्ब्रह्मापूर्वमनपरं ” इत्यादि श्रुतिवाक्योंसें वेदांत सिद्धांत विषे कार्यकारणभावका अंगीकारनही. फिरभी इसी अर्थको आगामी कमलमे स्पष्ट करेंगे ॥ हरिः ॐ तत्सत् ॥ ॥इति श्रीषोडश कमलमे स्वप्नसंबंद्धि प्रश्नोत्तर समाप्तः।।
For Private and Personal Use Only