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काहेते जो गंगाका प्रवाह तथा दीपकी ज्वाला तो तिसी क्षणहीमे गयी जो देखी वो कहां है ॥ . १४॥ सोश वशिष्ठने कहा है लीलाके प्रसंगमें हे देवि यह क्या आश्चर्य है यहां मृत्यु भये एकदिन स्मरणकरता हो तहां सत्तरवर्ष स्मरणमे आवते है ॥१॥ सत्तरवर्षको बाल्यावस्था यौवनावस्था अरु सर्व पिता पितामहादिक कुटुंब तथा नानायुद्धादिक कार्य स्मरण करता हो तो यह क्या है ॥ २ ॥ देवी कहती भई हे राजन वस्तुतः तुम न जन्म पाया है न मृत्युको प्राप्तभये हो केवल तुमको संपूर्ण अज्ञानके बलसे एसे देख परा है जैसे एक मुहूर्तमें स्वप्नविर्षे शतवर्ष देखनेमे आते है तैसे तुमकू एकदिनमात्रमे सत्तरवर्षका स्मरण भया है इस दृष्टांतसे सर्वजाग्रत्मे वस्तु नवीन होती है ॥३
१५ ॥ शिष्य उवाच हे गुरो स्वप्नपदार्थमायाजन्य है यांते मिथ्याहोवे तथापि जाग्रत् पदार्थतो स्वस्वकारणोंते उत्पन्नहोनेते सत्यहोने चाहीये. एसे श्रुतिभी कहती है “तिस आत्मासे आकाश उत्पन्नभया आकाशते वायुः” इत्यादि वाक्यों से स्वका. रणोंते कार्यकी उत्पत्तिकही है अविद्यासे उत्पत्ति कही नदी यांते स्वप्नसम मिथ्यानही है ॥ किंतु स्वकारणजन्य होनेते जागत्पदार्थ सत्यही है.
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