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(क) केवल अविद्याजन्य होनेते जाग्रतको व्यवहारिक सत्तावाली कही है निद्रादोष प्रमाणदोष सह कृत अविद्याजन्य स्वप्न रज्जुसादिक जे है ते प्रातिभासिक सत्तावाले कहे गये है यह। दोनोके भेदमे सदोषत्व निर्दोषत्वपणा कारण है. सिद्धांतमे तो जाग्रत पदार्थ स्वप्नेमे नही स्वप्न जाग्रतमें नही यांते दोनो सम है
१३ ॥ शिष्य उवाच जे जाग्रत पदार्थ है ते प्रतिदिवसमे देख परते है तैसेप्रतिदिन स्वप्नपदार्थ जाग्रतमे देखनेविषे आवतेनही यांते दोनोके भेदहोने परभी तिन दोनोको समान कैसे कहते हो। ॥श्रीगुरुरुवाच।। हे शिष्य यह जो आपने कह्या जाग्रत् पदार्थ प्रतिदिवस देखनेमे आवते है सो यह कहना अज्ञानतासे है जैसे तत्काल उत्पन्न स्वप्न पदाथाँकुं प्रत्यभिज्ञा ज्ञानकी विषयता अविद्याके बलते होती है तैसे केवल जाग्रत् कालमेही नवीन उत्पन्न होये पदार्थोमेभी अज्ञान वशतेप्रत्यभिज्ञा ज्ञानकी विषयता प्रतीतहोती है इसमे मनुष्योंकू भ्रांति होती है जो. जे पिता मातादिक बाल्यावस्थामे देखेथे सोई ही अबभी दीखपरते है सो एसे है नही जैसे जा गंगा बाल्यावस्थामे देखीथी सोइ मै वृद्धावस्थामेभी दे. खता हूं तथा जा दीपशिखा सायंकालमे देखीथीसो. रात्रिके अंतमे देखो दूं सो यह मायाका माहात्म्य है,
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