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(७२) अत्र विज्ञानकमलाकरस्यानिर्वचनीयकांडसमाप्तौ मंगलस्थानीयस्तु ॥ अथर्ववेदगतानां प्रश्नमुडमांइक्योपनिषदां शांतिपाठ एवचिंतनीयः॥ भद्रं कर्णेभिः शृणुयामदेवा भद्रं पश्येमाक्षिाभयेजत्राः। स्थिरै रंगैस्तुष्टुवांसस्तनुभिर्व्यशेमदेवहितं यदायुः ॥ॐस्वस्ति न इंद्रो वृहच्छ्वा स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदा स्वतिनस्ता रक्षोऽरिष्टनेमिः स्वस्तिनो बृहस्पतिर्दधातु हरि ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥अस्यायमर्थः॥ हे देवतावो ब्राह्मस्मरणरूप यज्ञक" जे हम मुमुक्षु जन है ते हम अनंत कोंसे आपमंगलमूर्तिकोंही श्रवणकरें अनंतचक्षुसे आपमंगल मूर्तिका सर्वत्र दर्शन करें सूक्ष्ममहावाक्यवाली श्रु तियोंसे तथा विषयवासना रहित द्रढेंद्रियोंसे आप मंगलमूर्तिकी स्तुति करते रहे और ब्रह्मदेवके प्राप्तिके योग्य आयुषको प्राप्त होवों बड़े यशस्वी इंद्र. सर्वज्ञाता सूर्य भगवान्. सर्व प्रकाशक पापोको चक्र नेमिसम चूर्णकर्ता गरुड. अरु बृहस्पति ये सर्व मुजको मोक्ष सुख देवें अध्यात्म अधिभूत अधिदेव जे तीन ताप है तिनोके शांत्यर्थ तीन शांति पाठ है ॥ हरिः ॐ
॥इतिश्री अष्टादशकमलं समाप्तम् ।। ॥इतिश्रीअनिर्वचनियकांडं समाप्तम् ।।
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