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ये सर्व ब्राह्मऋषि जाति बिना ब्राह्मज्ञान के बलसे प्रसिद्ध है यांते जाति अधीन ब्राह्मण नही तब ज्ञानसे ब्राह्मण कहो तो भी नही कारण जो क्षत्रिय ब्रह्मज्ञानी अजातशत्रु आदि वेदोक्त घणे है यांते ज्ञान ब्राह्मण नही तब कर्म ब्राह्मण कहो तो नही। का रण जो कर्म संचितागामी प्रारब्ध सर्वके साधारण है तथा कर्म वशसे स्वस्व क्रिया कर्ते है यांते कर्म ब्राह्मण नही तब धर्मको ब्राह्मण कहो तो भी नहीं कारण जो क्षत्रियादि भी स्वर्ण दाता बहुत होनेते धर्म ब्राह्मण नही तब ब्राह्मण कौन है एसे पूछो तो सुनो जो शुद्धबुद्धिमान अद्वितीयात्माको जाने सों ब्राह्मण है कैसा आत्मा है जो जाति गुणक्रिया हीन षड् उर्मिते रहित षड्भावसे रहित है तथा सत्यज्ञान अनंत स्वरूप निर्विकल्प सर्व संसारका अधिष्ठान स. र्वका प्रेरक आकाशसम सर्व व्यापी अखंडानंद स्वरूप अप्रमेय अनुभव वेद्य अपरोक्षता करके प्रसिद्ध ऐसे आत्माकों जो करामलकवत् प्रत्यक्ष करके काम कोधादिकोसे रहित होता है तथा शमदम संपन्न भयमात्सर्य आशा तृष्णा दंभाहंकारसे बिना वर्तता है तिसको ब्राह्मण कहते है अन्यथा ब्राह्मणत्व सिद्धि नहीं होती यांते सच्चिदानंद निराकार मै हूं एसीभावना करो इतिवज्रसूचि.अष्टादशोकमल.अनिर्वचनीयकांड पूर्ण।
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