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( ५ )
अब योग्य प्रत्युत्तर सुनलीजीये सो पद इस जगत्का कर्ता है तथा आदि, मध्य, अरु अंत इन तीनोसे रहित है और देशकालवस्तुके परिच्छेदतें रहित 'है सच्चिदानंदस्वरूप है इसजगत्का अधिष्ठानभी सोई है जैसे दर्पणमे दृश्यवस्तु प्रतिबिंबित होती है तैसे यह विश्व विश्वभरमे प्रतिबिंबित होती है मुमुक्षुजन जिसको जानकरके जीवन्मुक्त होते है जैसे दर्पण के देखनेसें दर्पण मे दृश्यवस्तुविषे संदेह रहिता नही तथा प्रतिबिंबों के ग्रहणकी इच्छाभी बुद्धिमानको होतीनही तथा तिस पदको जानकरके जगतमे जाननेकी इच्छाभी रहतीनही सर्वसंदेहोंते मुक्त होइ जाता है तिसको किसीके प्राप्ति की भी इच्छा रहती नही
३ | और हे देवि सो पद अज्ञातभी है काहेते घट समान जडवस्तुतो तिसके जानने में सामर्थ ही नही जो चेतन ज्ञाता कहो तो वह किस ज्ञाता करके सिद्ध है फिर तितकाभी कोई ज्ञाता ऐसे अनवस्था होती है स्वयं ज्ञाता माननेमे एकही कर्म एकदी कर्ता यह आत्माश्रय दोष होवेगा यांते सो पद अज्ञात है मै भी शास्त्रोंसें तिस पदको जान्या है मनवाणीका अविषय होनेते घटवत् वा सुखादिवत् प्रत्यक्ष देख्या नही एसे वोलकर तूष्णीभया ॥
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